जयपुर का इतिहास । Jaipur History In Hindi सम्पूर्ण जानकारी।

क्या आप जानते है जयपुर का इतिहास क्या रहा है, जयपुर के इतिहास मे किस वंश के राजाओ ने शासन किया और जयपुर मे किस – किस राज्य ने कब तक शासन किया, साथ ही जयपुर कहा पर है, जयपुर को राजस्थान की राजधानी कब बनाया गया, जयपुर को पिंक सिटी या गुलाबी नगरी क्यू कहा जाता है आपके इन सब सवालों का जवाब आज हम लेकर आए है और मुजे उम्मीद है आपके सभी सवालों को जवाब यहा मिल जाएगा।

जयपुर का इतिहास
जयपुर का इतिहास Jaipur History In Hindi

जयपुर का इतिहासः सारांश

जयपुर का इतिहास – के अन्तर्गत हम जयपुर के प्रमुख पर्यटन स्थल, जयपुर के  प्रमुख महल , किले ओर जयपुर के प्रमुख  मंदिर के साथ- साथ जयपुर के इतिहास का अध्ययन करेंगे। जयपुर राजस्थान का एक प्रमुख शहर है जो राजस्थान मे जनसंख्या की दृष्टि से राजस्थान का सबसे बड़ा शहर है,साथ ही जयपुर राजस्थान की राजधानी भी है, जयपुर मे कशवाह राजवंश का शासन रहा इसलिए जयपुर के इतिहास मे कशावह राजवंश का भी अध्ययन किया जाता है ।

जयपुर को पिंक सिटी या गुलाबी नगर क्यू कहा जाता है?

जयपुर के राजा राम सिंहजी द्वितय ने 1876 को इंगलेंड के राजकुमार अल्बर्ट एडवर्ड के जयपुर आने पर उनके स्वागत मे पूरे शहर को गुलाबी रंग से रंगवाया था, तब से जयपुर का नेम पिंक सिटी या गुलाबी शहर पड़ा।

राजस्थान का जयपुर कहा पर है?

राजस्थान की राजधानी कहा जाने वाला जयपुर शहर भारत के पश्चिमी राज्य राजस्थान के पूर्वी भाग मे स्थित है यह दिल्ली – अजमेर राष्ट्रीय राजमार्ग पर स्थित है जो दिल्ली से लगभग 285 किलोमीटर की दूरी पर है।

जयपुर का इतिहास : जयपुर की स्थापना कब और किसने की?

भारत का पेरिस‘,व ‘गुलाबी नगरी‘ के नाम से प्रसिद्ध जयपुर शहर का निर्माण जयपुर के महाराजा सवाई जयसिंह द्वितीय द्वारा 18 नवंबर 1727 को वास्तुशिल्पी विधाधर भट्टाचार्य के निर्देशन में नो वर्गों एवं 90* कोण सिद्धांत पर करवाया गया । जयपुर नरेश राम सिंह द्वितीय ने जयपुर की सभी इमारतों पर 1876 में इंग्लैंड के प्रिंस अल्बर्ट एडवर्ड के जयपुर आगमन पर गुलाबी रंग करवाया। तभी से जयपुर ‘गुलाबी नगर’ कहलाने लगा।

निर्माण समय18 नवम्बर 1727
निर्माणकर्तासवाई जय सिंह
वास्तुशिल्पीविधाधर भट्टाचार्य
गुलाबी रंगराम सिंह द्वितीय द्वारा
प्राचीन नामजयनगर
उपनामगुलाबी नगरी तथा भारत का पेरिस
जयपुर का इतिहास –jaipur history in hindi

जयपुर का इतिहास महत्वपूर्ण तथ्य:

  • इस जिले से सर्वाधिक विधानसभा (19) सदस्य चुने जाते है तथा दो लोकसभा सदस्य। 
  • जयपुर शहर का पुराना नाम जयनगर था। 
  • जयपुर के उपनाम – भारत का पेरिस ,दूसरा वृंदावन व गुलाबी नगरी । 
  • जयपुर के महाराजा कॉलेज की स्थापना  1844 मे तत्कालिक पॉलिटिकल एजेंट केपटेन लुडलो ने कि थी । 
  • ढूंढ नदी के किनारे बसा जयपुर शहर राजस्थान की राजधानी है । 
  • जयपुर को 30 मार्च ,1949 में राजस्थान की राजधानी बनाया गया है । 
  • जयपुर मे मंदिरों की अधिकता के कारण इसे ‘राजस्थान की दूसरी काशी’,गलताजी को ‘जयपुर की काशी’,व गोनेर को ‘जयपुर की मथुरा’ कहा जाता है। 
  • जयपुर राजस्थान का सर्वाधिक जनसंख्या ओर सर्वाधिक जनघनत्व वाला जिला है । 

जयपुर के राजाओं का इतिहास – जयपुर के राजाओं की वंशावली

कछवाह राजवंश स्वय को भगवान रामचन्द्र के पुत्र कुश का वंशज बताते है। इनके प्राचीन इतिहास के बारे मे अधिक जानकारी उपलब्ध नहीं है।

दुलहराय

सोंधा सिंह की मरत्यु के बाद दुलहराय 1007 ई. मे दौसा का शासक बना। दुलहराय ने एसके बाद भाणदारेज एवं माची के मीणाओ को पराजित करके ये क्षेत्र अपने अधिकार मे कर लिया। दुलहराय ने माची क्षेत्र मे एक दुर्ग का निर्माण करवाया और उसका नाम रामगढ़ रखा वही पास मे अपनी कुलदेवी ‘जमुवाय माता’ के मंदिर का निर्माण करवाया। जमुरावगढ़ को अपनी दूसरी राजधानी बनवाया।

काकिल देव

दूल्हे राय के निधन के बाद इसका बड़ा पुत्र का काकिलदेव 1035 ईस्वी में दोसा की गद्दी पर बैठा। काकिलदेव ने अपने शासन के पहले ही वर्ष में अपने पराक्रम व कुलदेवी के आशीर्वाद से आमेर के मीणाओं को बुरी तरह हराया तथा आमेर पर अधिकार कर लिया इसके पास में आमेर (अंबिकापुर) कस्बा बसाया तथा वहां अंबिकेश्वर महादेव का मंदिर बनवाया इसने अंबिकापुर (आमेर) को अपने राज्य की राजधानी बनाया तभी से आमेर जयपुर का निर्माण होने तक कछवाओ की राजधानी बना रहा।

पृथ्वीराज

पृथ्वीराज 18 जनवरी,1503 ईसवी को आमेर का शासक बना । यह प्रारंभ में कापालिक मतानुयायी कनफटे नाथ योगी का शिष्य था। इसके समय रामानंद के शिष्य कृष्णदास पयहारी ने गलताजी में इन नाथ योगियों को शास्त्रार्थ में पराजित कर वहा रामानंदी संप्रदाय के मठ की स्थापना की । पृथ्वीराज ,पयहारी जी से प्रभावित हो उनका अनुयाई हो गया मेवाड़ के महाराणा सांगा ने अपनी बहन का विवाह पृथ्वीराज के साथ किया राणा सांगा के साथ पृथ्वीराज ने खानवा के युद्ध में भाग लिया तथा उसमे वीरगति को प्राप्त हुआ।

राजा भारमल

राजा भारमल की जयपुर इतिहास मे यक महत्वपूर्ण भूमिका है ये पहले राजपूत थे जिन्होंने मुगलों से वैवाहिक संबंध स्थापित किए। सांगा कछवाहा की निःसंतान मृत्यु हो जाने पर उसका छोटा भाई भारमल सांगानेर का शासक हुआ आमेर के शासक रतन सिंह की 27 मई, 1547 ई. को रतनसिंह के भाई आसकरण द्वारा विष देकर हत्या कर दी गई एवं आसकरण शासक बन बैठा। कुछ समय बाद जून, 1547 में भारमल ने आमेर पर अपना अधिकार कर लिया एवं आसकरण को देश निकाला दे दिया। उस समय भारमल का पुत्र भगवान दास मेवाड़ महाराणा उदयसिंह की सेवा में मेवाड़ का सामन्त था।

राजा भारमल ने जनवरी, 1562 ई. में मुगल सम्राट अकबर से उसकी अजमेर यात्रा के दौरान अपने मित्र चगताई खाँ की मदद से सांगानेर के निकट मुलाकात कर अकबर की अधीनता स्वीकार की तथा बाद में सांभर में जाकर अपनी पुत्री हरकुबाई/हरकाबाई (जो इतिहास में जोधाबाई के नाम से प्रसिद्ध हुई) की शादी अकबर के साथ कर वैवाहिक संबंधों के माध्यम से मुगलों के साथ सहयोग की नीति का शुभारम्भ किया। भारमल राजपूताना के पहले शासक थे, जिन्होंने अकबर की अधीनता स्वीकार कर उसे अपनी बेटी की शादी करवाई इसके बाद भारमल के पुत्र भगवंतदास और पोता मानसिंह अकबर की सेवा में आगरा चले गए अकबर के चित्तौड़ आक्रमण के समय भारमल भी उसकी सेना में था।

राजा भगवन्तदास

राजा भारमल की मृत्यु के बाद उनके पुत्र भगवंतदास आमेर के शासन पर बैठे । भगवंतदास आमेर की गद्दी पर बैठने के बाद पुत्र मानसिंह के साथ बादशाह अकबर की सेवा में आगरा गया । बादशाह ने उसे 5 हजारी जात व सवार का मनसब प्रदान किया। भगवंत दास ने 1585 ईस्वी में अपनी पुत्री मानबाई का विवाह शहजादे सलीम के साथ किया।

आमेर के राजा मानसिंह

राजपूतों का मुगलों के साथ सहयोग सन 1562 ईस्वी में प्रारंभ हुआ था । आमेर राजस्थान का प्रथम राज्य था जिसने मुगलों के साथ सहयोग और समर्पण की नीति अपनाई1589ई. में राजा मानसिंह ने आमेर का शासन संभाला । बादशाह अकबर मानसिंह को “फर्जंद” या “मिर्जा राजा” कहते थे यह अकबर के सेनानायको में सर्वाधिक उसे अमीरों में गिना जाता था इसे अकबर ने 7 हजारी सवार व जात का मनसब प्रदान किया जो केवल इन्हें व ‘ कोका अजीज’ को ही प्राप्त था।

मानसिंह के प्रमुख कार्य –

  1. महाराणा प्रताप से भेंट
  2. हल्दीघाटी का युद्ध
  3. उत्तरी- पश्चिमी सीमांत प्रांत में विद्रोह का दमन
  4. काबुल विजय
  5. बिहार की सूबेदारी
  6. उड़ीसा विजय
  7. बंगाल की सूबेदारी
  8. अहमदनगर अभियान आदि।

मिर्जा राजा जयसिंह

आमेर के शासक भाव सिंह की मृत्यु के बाद जयसिंह 23 दिसंबर 1621 को 11 वर्ष की आयु में आमेर के राजा बने । इनके लंबे शासनकाल में इन्होंने तीन मुगल बादशाहजहांगीर, शाहजहां , औरंगजेब के साथ कार्य किया।  1638 ईस्वी में शाहजहां द्वारा इन्हें मिर्जा राजा की पदवी से सम्मानित किया गया जयपुर के कछवाहा वंश में इन्होंने सर्वाधिक अवधि 46 वर्ष तक निर्बाध रूप से शासन किया। इन्होंने शिवाजी तथा औरंगजेब के बीच पुरंदर की संधि करवाई। 

महाराजा रामसिंह प्रथम

मिर्जा राजा जयसिंह की मृत्यु के बाद 8 सितंबर 1667 को उनके जेष्ठ पुत्र कुंवर राम सिंह आमेर की राजगद्दी पर विराजमान हुए।

महाराजा विष्णु सिंह/ बिशन सिंह

महाराजा राम सिंह के पुत्र कृष्ण सिंह का मुगल सेवा में दक्षिण में देहांत हो गया था । अंत राम सिंह के निधन के बाद उनके पुत्र बिशन सिंह या विष्णु सिंह को 19 सितंबर 1689 को आमेर की गद्दी पर बैठाया गया। दादा राम सिंह की काबुल में मृत्यु के समय यह उनके साथ थे।

महाराजा सवाई सिंह द्वितीय

महाराजा सवाईजयसिंह जयपुर इतिहास के प्रमुख राजा हुए । महाराजा विष्णु सिंह का निधन हो जाने पर उनके पुत्र जयसिंह आमेर के शासक बने इनका वास्तविक नाम विजय सिंह तथा उनके भाई का नाम जय सिंह था परंतु इनके रणकौशल से खुश होकर बादशाह औरंगजेब ने इनका नाम जयसिंह रखा तथा इन्हे ‘सवाई ‘ का खिताब दिया तथा उनके छोटे भाई का नाम विजय सिंह रखा यह सवाई जय सिंह के नाम से प्रसिद्ध हुए इनके बाद के जयपुर के सभी शासकों ने अपने नाम के आगे सवाई लगाया। 1734 ईस्वी में जयसिंह ने जयपुर में एक बड़ी वैद्यसाला ‘ जंतर मंतर‘ का निर्माण करवाया जो देश की सबसे बड़ी वैद्यसाला है।  यूनेस्को ने 1 अगस्त 2010 को जयपुर के जंतर मंत्र सहित विश्व के 7 स्मारकों को यूनेस्को की विश्व विरासत सूची में शामिल किया। 

सवाई जयसिंह ने 18 नवंबर 1727ई को जयनगर वर्तमान जयपुर की नीव पंडित सम्राट जगन्नाथ के हाथों रखवाई । जयपुर का नक्शा बंगाली वास्तविक व तांत्रिक विद्याधर भट्टाचार्य के निर्देशन में तैयार करवाया। प्रारंभ में इस शहर का नाम जयनगर रखा गया जो अब जयपुर हो गया है इसे गुलाबी नगरी नाम बीसवीं सदी के प्रारंभ में एक ब्रिटिश अधिकारी ने दिया।  सवाई जयसिंह ने मिर्जा राजा जयसिंह द्वारा बनाए गए जयगढ़ दुर्ग का कार्य पूर्ण करवाया तथा उसे और मजबूत करवाया एवं मराठों से रक्षा हेतु नाहरगढ़ दुर्ग का निर्माण करवाया। 

सवाई ईश्वरी सिंह

सवाई जयसिंह की मृत्यु के बाद उनके जेष्ठ पुत्र ईश्वरी सिंह 1746 ईस्वी में जयपुर के राज्य आसन पर विराजमान हुए। सवाई ईश्वरी सिंह ने राज महल के युद्ध की विजय उपलक्ष में जयपुर के त्रिपोलिया बाजार में ईसरलाट वर्तमान सरगासूली नामक एक ऊंची मीनार का निर्माण करवाया और ऐसा कहा जाता है कि सवाई ईश्वरी सिंह ने इसी मीनार से कूदकर आत्महत्या की थी।

सवाई माधो सिंह प्रथम

जयपुर महाराज सवाई ईश्वरी सिंह के निधन का समाचार मिलते ही उनके सौतले भाई सवाई माधो सिंह तुरंत उदयपुर से चलकर 29 दिसंबर,1750 को जयपुर पहुचे। 10 जनवरी, 1751 को वे जयपुर के शासक बने। सवाई माधो सिंह ने 1763 ई. मे जयपुर में मोती डूंगरी पर महलों का निर्माण करवाया तथा रणथंभौर से कुछ दूर सवाई माधोपुर कस्बा बसाया।

महाराजा सवाई प्रताप सिंह

महाराजा पृथ्वी सिंह की निसंतान मृत्यु हो जाने पर उनके छोटे भाई प्रताप सिंह 16 अप्रैल 1778 को जयपुर के राजसिंहासन के मालिक बने। महाराजा प्रताप सिंह एक कवि, लेखक, संगीत एवं शिल्पशास्त्र का ज्ञाता एव विद्वानों, शिल्पियो, कलाकारों को आश्रय प्रदान करने वाला शासक था इन्होंने 1799 ईस्वी में जयपुर में पांच मंजिले प्रसिद्ध हवामहल का निर्माण करवाया।

महाराजा जगत सिंह द्वितीय

महाराजा सवाई प्रताप सिंह की मृत्यु के बाद उनके पुत्र जयपुर के राजसिंहासन के स्वामी बने।  1803 ईस्वी में ही मेवाड़ महाराणा भीम सिंह की पुत्री कृष्णा कुंवर के विवाद को लेकर जयपुर व जोधपुर राज्यों के मध्य उत्पन्न वैमनस्य ने भयंकर युद्ध हुए । महाराणा भीमसिंह ने अपनी पुत्री कृष्णा कुवरी का संबंध मारवाड़ के शासक भीम सिंह से तय किया था , परंतु 1803 ईस्वी में महाराजा भीम सिंह का निधन हो जाने पर यह संबंध जयपुर के महाराजा से तय कर लिया गया । मारवाड़ के नए शासक महाराजा मानसिंह ने इस पर आपत्ति कर कहा कि कृष्णा कुमारी का नारियल जोधपुर आया था । अंत उसका विवाह भी जोधपुर ही होगा और कहीं नहीं । फल स्वरुप जयपुर और जोधपुर में मार्च 1807 ईस्वी में गिंगोली के मैदान में युद्ध हुआ जिसमें जयपुर की सेनाओं ने जोधपुर के महाराजा मानसिंह की सेना को करारी शिकस्त दी।

महाराजा सवाई रामसिंह द्वितीय

महाराजा रामसिंह अपने पिता जयसिंह तृतीय की मृत्यु के बाद 16 माह की आयु में जयपुर के महाराजा बने। इनके समय मेजर जॉन लूडलो ने जनवरी 1843 ईसवी में जयपुर का प्रशासन संभाला तथा उन्होंने सती प्रथा , दास प्रथा और कन्या वध, दहेज प्रथा आदि पर रोक लगाने के आदेश जारी किए।  अंग्रेजी सरकार ने इन्हें ‘ सितारे हिंद की ‘ उपाधि प्रदान की । 1876 ईस्वी में प्रिंस ऑफ वेल्स प्रिंस अल्बर्ट के जयपुर आगमन पर सवाई राम सिंह द्वारा जयपुर की सभी इमारतों को गुलाबी रंग करवाया गया इसी वजह से बाद में जयपुर को गुलाबी नगरी कहा जाने लगा । 1857 ईसवी में महाराजा द्वारा राज्य में कला और नृत्य के प्रोत्साहन हेतु जयपुर में मदरसा- ए- हुनरी खोला1865 ईस्वी में इसका नाम बदलकर महाराजा स्कूल ऑफ आर्ट्स एंड क्राफ्ट्स कर दिया था। जो वर्तमान में राजस्थान स्कूल ऑफ आर्ट एंड क्राफ्ट के नाम से प्रसिद्ध है । महाराजा सवाई रामसिंह ने सन 1879 ईस्वी में चांदी की टकसाल तथा जयपुर में रियासत के पहले रंगमंच राम प्रकाश थियेटर की स्थापना करवाई। इनके काल को जयपुर की उन्नति का स्वर्ण युग कहा जाता है।

महाराजा सवाई माधो सिंह द्वितीय

सवाई राम सिंह के निसंतान मर जाने से उनके गोद लिए हुए कायम सिंह 19 सितंबर 1880 को सवाई माधो सिंह द्वितीय के नाम से जयपुर के सिहाशन पर बैठे। इनके काल में रियासत की सभी तरह की उन्नति हुई। यह 1902 ईसवी में ब्रिटिश सम्राट एडवर्ड सप्तम के राज्यअभिषेक समारोह में शामिल होने इंग्लैंड गए। माधोसिंहजी ने पंडित मदन मोहन मालवीय का जयपुर में भव्य स्वागत कर बनारस हिंदू विश्वविद्यालय की स्थापना करने के लिए 5 लाख रुपए दिए थे।

महाराजा सवाई मानसिंह द्वितीय

महाराजा माधोसिंह द्वितीय के पश्चात उनके दत्तक पुत्र मोर मुकुट सिंह 8 सितंबर 1922 को सवाई मानसिंह द्वितीय के नाम से जयपुर के महाराजा बने।

जयपुर का इतिहास – प्रमुख मेले व त्योहार 

मेलास्थानदिन
गणगौर का मेलाजयपुरचैत्र शुक्ल तीज 
बाणगंगा का मेलाविराट नगरवैशाख पूर्णिमा
शीतला  माता का मेलाचाकसूचैत्र  कृष्ण अष्टमी
तीज की सवारीजयपुर 
जयपुर का इतिहास – Jaipur history In Hindi

जयपुर का इतिहास – जयपुर के आकर्षक पर्यटन और दर्शनीय स्थल 

हवा महल ( पैलेस ऑफ विंड्स): 

इसका निर्माण सन 1799 में जयपुर के महाराजा सवाई प्रताप सिंह ने लाल व गुलाबी बलुई पत्थर से करवाया था । इसमें पांच मंजिले है जिनका नाम शरद मंदिर ,रत्न मंदिर ,विचित्र मंदिर , प्रकाश मंदिर और हवा मंदिर है । यह महल राजपूत कला और मुगल कला का समन्वय है । हवा महल को 1968 ई.  मे संरक्षित स्मारक घोषित कर दिया गया था ।

जयपुर का इतिहास । Jaipur History In Hindi
जयपुर का हवामहल- Jaipur History In Hindi

जलमहल (The island Palace): 

मानसागर झील में स्थित जल महल के निर्माण का श्रेय सवाई जयसिंह द्वितीय को दिया जाता है। सवाई जयसिंह ने जयपुर की जलापूर्ति हेतु गर्भावती नदी पर बांध बना कर मानसागर तालाब बनवाया , इस महल को ‘आई बाल’ के नाम से भी जाना जाता है । इसके  अंदर पांच मंजिले है जिनमें से चार पनि मे है, राजस्थान सरकार ने इसे संरक्षित पुरातात्विक क्षेत्र घोषित कर दिया है ।

जयपुर का इतिहास । Jaipur History In Hindi
जलमहल (The island Palace)- Jaipur history in hindi

सिटी पैलेस (चंद्र महल ):

जयपुर का इतिहास मे इन महलों की यक विशेष भूमिका रही है। यह जयपुर राजपरिवार का निवास स्थान था। दीवाने आम में महाराजा का निजी पुस्तकालय (पोषाखाना) एवं शस्त्रागार (सिलवाना है। इसका मुख्य प्रवेशद्वार गैंडा की ड्योढ़ी कहलाता है, जिसे आज वीरेन्द्र पोल भी कहते हैं। पूर्व के द्वार को सिरहाड़ी कहते हैं। सिटी पैलेस की प्रमुख बिल्डिंग’चंद्र महल’ है। ये सात मंजिला पिरामिडमा भव्य इमारत है, जो राजपूत शैली में बनी हुई है। चन्द्र महल का निर्माण सन् 1729-32 के बीच सवाई जयसिंह द्वारा विद्याधर भट्ट (चक्रवर्ती के निर्देशन में करवाया गया था। इस महल के दीवाने खास में चांदी के दो बड़े कलश ‘गंगाजल’ आकर्षण इन्हें सन् 1902 में सम्राट एडवर्ड सप्तम के राज्याभिषेक समारोह में भाग लेने जाते समय महाराजा सवाई माधोसिंह द्वितीय पत्र गंगाजल में भरकर ले गए थे। ये दुनिया में चाँदी के सबसे बड़े बर्तनों के रूप में गिनिज बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड में शामिल हैं। सिटी पैलेस का वास्तुकार याकूब था।

जयपुर का इतिहास । Jaipur History In Hindi
सिटी पैलेस (चंद्र महल )– Jaipur history in hindi

सर्वतोभद्र महल

सिटी पैलेस परिसर में स्थित इस महल को दीवाने खास भी कहा जाता है। इसे सामान्य वन सरबता कहते थे। इसी के कोरा झील के किनारे बादल महल स्थित है, जो जयपुर बस से पूर्व से स्थित शिकार की ओटी को महाराजा सवाई द्वारा विस्तृत व पुनर्निमित क्त बनवाया गया था। भद माह में यहाँ महाराजा शरद पूर्णिमा की दरकार लगाते थे। देवाच कृष्ण भट्ट ने अपने महाकाव्य ‘ईश्वर विलास’ में लिखा है कि सवाई जयसिंह ने इस महल में इसरीसिंह को अपना उत्तराधिकारी घोषित किया था। महाराजा प्रताप सिंह के समय सूरत खाने के चित्रकार एवं पोथीखाने के ग्रंथकार इसी सभा मंडप में बैठकर अपने कार्य करते थे।

मुबारक महल (वेलकम पैलेस)

जयपुर राजप्रासाद परिसर (सिटी पैलेस) में स्थित इस महल का निर्माण महाराजा सवाई माधोसिंह द्वितीय सेव निर्देशन में करवाया था। रियासत के मेहमानों को ठहराने के लिए सन् 1900 में निर्मित इस महल में मुगल, यूरोपीय और राजस्थान कला का अद्भुत समन्वय है। इसमें 1911 में किंग एडवर्ड साम एवं क्वीन एलेक्जेंड्रा तथा 1922 में प्रिंस ऑफ वेल्चर ठहरे थे। मुबारक चंद्रमहल के दक्षिण में भव्य प्रीतम निवास बना हुआ है, जिसे सवाई प्रताप सिंह ने बनवाया था।

आमेर के महल:

कछवाह राज्य मान सिंह द्वारा 1592 मे निर्मित ये महल हिन्दू – मुस्लिम शैली के समन्वित रूप है । ये आमेर की मावठा झील के पास पहाड़ी पर स्थित है। मुगल बादशाह बहादुरशाह ने सवाई जयसिह के कल मे इस पर आक्रमण करके इसे जितकर एस्क नाम मोमीदाबाद रख दिया । यूनेशकों ने 21 जून 2013 को राजस्थान के 6 किलों को विश्व विराशत सूची मे सामील करने की घोषणा की जिसमे आमेर का दुर्ग भी सामील था

सामोद महल

महल का प्रमुख आकर्षण शीश महल है। शीश महल का निर्माण रावल शिव सिंह ने 19वीं सदी के उत्तरार्द्ध में किया था। सामोद में कलात्मक एवं विशाल महलों में चित्रकारी के अलावा काँच एवं मीनाकारी का बेमिसाल काम है। इसकी छतों एवं स्तंभों पर सुंदर काँच का काम आमेर महल की ही अनुकृति है। यहाँ के भित्ति चित्रों में धार्मिक जीवन के अलावा साहित्यिक एवं सामाजिक जीवन को भी झाँकी मिलती है। यहाँ सुल्तान महल भी दर्शनीय है। सामोद में सात बहनों का मंदिर भी है। जयपुर में स्थित इस भव्य सर्किल पर जयपुर के संस्थापक सवाई जयसिंह की मूर्ति लगी हुई है। इस मूर्ति के वास्तुकार स्व. महेन्द्र कुमार दातर थे।

विराटनगर

जयपुर इतिहास के अलावा इस शहर का अपना एक अलग इतिहास भी रहा है। जयपुर- अलवर मार्ग पर स्थित प्राचीन स्थल, जहाँ बौद्ध मंदिर के अवशेष मिले हैं। कहा जाता है कि पांडवों ने यहां अपने अज्ञातवास का एक वर्ष व्यतीत किया था। यहाँ भीम को डूंगरी (पाण्डु हिल) स्थित है। यहाँ अशोक के शिलालेख भी मिले हैं। विराट नगर में अकबर द्वारा बनाई गई टकसाल, मुगल गार्डन एवं जहाँगीर द्वारा बनाये गये स्मारक स्थित है। जयपुर के दक्षिण में निकटवतों कस्बा जहाँ 11वीं सदी के संभाजी के जैन मंदिर प्रसिद्ध हैं।

नाहरगढ़ 

नाहरगढ़ का निर्माण जयपुर के संस्थापक सवाई जयसिह द्वारा मराठों से सुरक्षा हेतु 1734 ई। मे करवाया था । इसे सूदर्शनगढ़ भी कहते है ।

जयपुर का इतिहास । Jaipur History In Hindi
नाहरगढ़ – Jaipur history in hindi

जंतर- मंतर 

जयपुर नरेश ने भारत मे 5 वेधशालाए बनवाई जो निम्न है – मथुरा ,जयपुर , दिल्ली, उज्जैन बनारस।  सन 1734 मे निर्मित जयपुर वेधशाला 5 वेधशालों मे सबसे बड़ी वेधशाला है । एस्क निर्माण कार्य 1738 मे जाकर पूर्ण हुआ। एस्क प्रारम्भिक नाम यंतर-मंतर था। इसमें विश्व की सबसे बड़ी पाषाण दीवार घड़ी लगी हुई है। जंतर – मंतर को 2010 मे यूनेस्को की विश्व विरासत सूची मे सामील गया। यह वेधशाला जयपुर का इतिहास के साथ ही भारत के इतिहास मे भी महत्वपूर्ण रही है।

जयपुर का इतिहास । Jaipur History In Hindi
जंतर- मंतर 

ईसरलाट (सरगासूली)

जयपुर में त्रिपोलिया गेट के निकट स्थित इस साथ खंडों की इमारत को महाराजा ईश्वरी सिंह ने बनवाया था, मराठों के आक्रमण के समय इसी के ऊपर से गिरकर महाराजा ईश्वरी सिंहआत्महत्या की थी । यह जयपुर के इतिहास की अपमानीय घटना थी।

जयपुर का इतिहास । Jaipur History In Hindi
ईसरलाट (सरगासूली)-Jaipur history in hindi

जयपुर का इतिहास अन्य महत्वपूर्ण स्थल  

  1. मुबारक महल (वेलकम पैलेस)
  2. प्रीतम निवास 
  3. माधो निवास 
  4. जय निवास उद्यान 
  5. सवाई मानसिंह संग्रहालय 
  6. कचहरिया 
  7. दीवान-ए-खास 
  8. शीश महल 
  9. पन्ना मीन की बावड़ी 
  10. रत्नाकर की हवेली 
  11. जमुरावगढ़ बांध 
  12. सामोद महल 
  13. मोती डूंगरी 
  14. अल्बर्ट हॉल 
  15. गेटोर की छतरियां 
  16. राजा मानसिंह की छतरी 
  17. महारानी की छतरी 
  18. साल्ट म्यूजियम 
  19. विज्ञान उद्यान 
  20. छपरवाड़ा बांध 
  21. सलीम मंजिल 
  22. मुगल गेट 
  23. आनंद पोल 
  24. केसर क्यारी 
  25. मोती महल

जयपुर का इतिहास – मे जयपुर के प्रमुख मंदिरों की महत्वता

 गलताजी जयपुर :

‘जयपुर के बनारस’ के नाम से प्रसिद्ध प्राचीन पवित्र कुंड। जहां गालव ऋषि का आश्रम था । वर्तमान में बंदरों की अधिकता के कारण यह Monkey Valley के नाम से प्रसिद्ध है । गलता को ‘ उत्तर तोताद्री भी कहा जाता है । संत कृष्णदास पयहारी ने यहा रामानंदी संप्रदाय की स्थापना की थी ।

शीतला माता का मंदिर ,चाकसू 

चाकसू मे शील डूंगरी नामक पहाड़ी पर चेचक से रक्षा करने वाली देवी शीतलामाता का मंदिर है । ए मंदिर जयपुर के महाराजा माधोसिह द्वितीय ने बनवाया था। शीतलामाता का परंपरागत पुजारी कुम्हार होता है । शीतलामाता खंडित अवस्था मे पूजी जाने वाली एकमात्र लोक देवी है । गधा इस देवी का वाहन मन जाता है ।

श्री गोविंद देव जी का मंदिर

गौड़ीय संप्रदाय के इस मंदिर का निर्माण 135 ई. मे जयपुर के संस्थापक सवाई जयसिह ने करवाया था। यहा वृंदावन से ल गोविंद देवजी मूर्ति की स्थापना की गई ।

शिला माता का मंदिर (अन्नपूर्णा देवी) 

शिला माता जयपुर के राजवंश की आराध्य देवी है । शिला माता की मूर्ति को जयपुर के शासक महाराजा मानसिंह  प्रथम 1604 मे बंगाल से लाए थे । वर्तमान बने मंदिर का निर्माण सवाई मान सिंह द्वितीय ने करवाया।

जमुवाय माता का मंदिर इस विशाल मंदिर का निर्माण कछवाहा राजवंश के संस्थापक दुलहराय ने करवाया था । जमुवाय माता आमेर के कछवाहा राजवंश की कुलदेवी है ।

जयपुर का इतिहास –  में अन्य प्रमुख मंदिर 

  1. देवयानी मंदिर 
  2. गणेश मंदिर 
  3. बिड़ला मंदिर 
  4. जगत शिरोमणि मंदिर आमेर 
  5. अंबिकेश्वर महादेव का मंदिर 
  6. बिहारी जी का मंदिर 
  7. कुंज बिहारी का मंदिर 
  8. राधा – माधव मंदिर 
  9. चुलगिरी के जैन मंदिर 
  10. नकटी माता का मंदिर 
  11. खलकानी  माता का मंदिर 
  12. वामांदेव मंदिर 
  13. कल्कि मंदिर 
  14. ज्वाला माता का मंदिर 
  15. सूर्य मंदिर

जयपुर का इतिहास काफी प्राचीन इतिहास है जयपुर ओर आमेर पर कछवाह वंश का आधिपत्य रहा , राजा – महारजाओ ने अनेक मंदिर ,किले ,महल ओर बावड़ियों का निर्माण करवाया जो वर्तमान काल मे लोगों के लिए पर्यटन के स्थल हो गए , जयपुर के इतिहास मे अनेक शिल्पी ओर बुद्धिजीवी पनपे ।

जयपुर की स्थापना किसने की ?

जयपुर की स्थापना सवाई जयसिंह द्वितीय ने की थी ।

जयपुर की स्थापना कब की गई?

जयपुर की स्थापना 1727 ई . मे की गई थी ।

जयपुर का क्षेत्रफल कितना है ?

जयपुर का क्षेत्रफल 11143 वर्ग कि.मी। है ।

बाणगंगा का मेला किस जिले मे लगता है?

जयपुर मे ।

जयपुर को गुलाबी रंग किसने करवाया?

जयपुर को गुलाबी रंग महाराजा सवाई राम सिंह द्वितय ने करवाया था।

जयपुर का पुराना नाम क्या था?

जयपुर का पुराना नाम जयनगर था ।

निष्कर्ष:

इस पोस्ट के माध्यम से हमने जयपुर का इतिहास की विस्तरत व्याख्या की है जिसमे जयपुर के महल, मंदिर ,दुर्ग ओर बावड़ियों जेसे सभी मुख्य तत्वों को सामील करने की भलीभती कोसिस की है । हमें आशा है आपको jaipur ka itihash जानने मे अब कठिनाई नहीं होगी। (जयपुर का इतिहास । Jaipur History In Hindi)।

 

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