जयपुर का इतिहासः के अन्तर्गत हम जयपुर के प्रमुख पर्यटन स्थल, जयपुर के प्रमुख महल , किले ओर जयपुर के प्रमुख मंदिर के साथ- साथ जयपुर के इतिहास का अध्ययन करेंगे। जयपुर राजस्थान का एक प्रमुख शहर है जो राजस्थान मे जनसंख्या की दृष्टि से राजस्थान का सबसे बड़ा शहर है,साथ ही जयपुर राजस्थान की राजधानी भी है, जयपुर मे कशवाह राजवंश का शासन रहा इसलिए जयपुर के इतिहास मे कशावह राजवंश का भी अध्ययन किया जाता है ।
जयपुर का इतिहास । Jaipur History In Hindi |
जयपुर का इतिहास । Jaipur History In Hindi
‘भारत का पेरिस‘,व ‘गुलाबी नगरी‘ के नाम से प्रसिद्ध जयपुर शहर का निर्माण जयपुर के महाराजा सवाई जयसिंह द्वितय द्वारा 18 नवंबर 1727 को वास्तुशिल्पी विधाधर भट्टाचार्य के निर्देशन मे नों वर्गों एव 90* कोण सिद्धांत पर करवाया गया । जयपुर नरेश राम सिंह द्वितीय ने जयपुर की सभी इमारतों पर 1876 मे इंगलेण्ड के प्रिंस अल्बर्ट एडवर्ड के जयपुर आगमन पर गुलाबी रंग करवाया। तभी से जयपुर ‘गुलाबी नगर ‘कहलाने लगा।
जयपुर का इतिहास महत्वपूर्ण तथ्य:
- इस जिले से सर्वाधिक विधानसभा (19) सदस्य चुने जाते है तथा दो लोकसभा सदस्य।
- जयपुर शहर का पुराना नाम जयनगर था।
- जयपुर के उपनाम – भारत का पेरिस ,दूसरा वृंदावन व गुलाबी नागरी ।
- जयपुर के महाराजा कॉलेज की स्थापना 1844 मे तत्कालिक पॉलिटिकल एजेंट केपटेन लुडलो ने कि थी ।
- ढूंढ नदी के किनारे बसा जयपुर शहर राजस्थान की राजधानी है ।
- जयपुर को 30 मार्च ,1949 मे राजस्थान की राजधानी बनाया गया है ।
- जयपुर मे मंदिरों की अधिकता के कारण इसे ‘राजस्थान की दूसरी काशी’,गलताजी को ‘जयपुर की काशी’,व गोनेर को ‘जयपुर की मथुरा’ कहा जाता है।
- जयपुर राजस्थान का सर्वाधिक जनसंख्या ओर सर्वाधिक जन घनत्व वाला जिला है ।
जयपुर का इतिहासः प्रमुख मेले व त्योहार
मेला | स्थान | दिन |
---|---|---|
गणगौर का मेला | जयपुर | चेत्र शुक्ल तीज |
बाणगंगा का मेला | विराट नगर | वेशाख पूर्णिमा |
शीतला मत का मेला | चाकसू | चेत्र कृष्ण अष्टमी |
तीज की सवारी | जयपुर |
जयपुर का इतिहासः जयपुर के पर्यटन ओर दर्शनीय स्थल
इसका निर्माण सन 1799 मे जयपुर के महाराजा सवाई प्रताप सिंह ने लाल व गुलाबी बलुई पत्थर से करवाया था । इसमें पाँच मंजिले है जिनका नाम शरद मंदिर ,रत्न मंदिर ,विचित्र मंदिर , प्रकाश मंदिर ओर हवामन्दिर है । यह महल राजपूत कला ओर मुगल कला का समन्वय है । हवामहल को 1968 ई. मे सरक्षित स्मारक घोषित कर दिया गया था ।
मानसागर झील मे स्थित जलमहल के निर्माण का श्रेय सवाई जयसिंह द्वितीय को दिया जाता है। सवाई जैसिंघ ने जयपुर की जलापूर्ति हेतु गर्भावती नदी पर बांध बनवा कर मानसागर तलब बनवाया , इस महल को ‘आई बाल‘ के नाम से भी जाना जाता है । एसके अंडेर पाँच मंजिले है जिनमे से चार पनि मे है, राजस्थान सरकार ने इसे सरक्षित पुरातात्विक क्षेत्र घोषित कर दिया है ।
सिटी पैलेस (चंद्रमहल ):
यह जयपुर राजपरिवार का निवास स्थान था। दीवाने आम में महाराजा का निजी पुस्तकालय (पोषाखाना) एवं शस्त्रागार (सिलवाना है। इसका मुख्य प्रवेशद्वार गैंडा की ड्योढ़ी कहलाता है, जिसे आज वीरेन्द्र पोल भी कहते हैं। पूर्व के द्वार को सिरहाड़ी कहते हैं। सिटी पैलेस की प्रमुख बिल्डिंग’चंद्र महल’ है। ये सात मंजिला पिरामिडमा भव्य इमारत है, जो राजपूत शैली में बनी हुई है। चन्द्र महल का निर्माण सन् 1729-32 के बीच सवाई जयसिंह द्वारा विद्याधर भट्ट (चक्रवर्ती के निर्देशन में करवाया गया था। इस महल के दीवाने खास में चांदी के दो बड़े कलश ‘गंगाजल’ आकर्षण इन्हें सन् 1902 में सम्राट एडवर्ड सप्तम के राज्याभिषेक समारोह में भाग लेने जाते समय महाराजा सवाई माधोसिंह द्वितीय पत्र गंगाजल में भरकर ले गए थे। ये दुनिया में चाँदी के सबसे बड़े बर्तनों के रूप में गिनिज बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड में शामिल हैं। सिटी पैलेस का वास्तुकार याकूब था।
सर्वतोभद्र महल
सिटी पैलेस परिसर में स्थित इस महल को दीवाने खास भी कहा जाता है। इसे सामान्य वन सरबता कहते थे। इसी के कोरा झील के किनारे बादल महल स्थित है, जो जयपुर बस से पूर्व से स्थित शिकार की ओटी को महाराजा सवाई द्वारा विस्तृत व पुनर्निमित क्त बनवाया गया था। भद माहत में यहाँ महाराजा शरद पूर्णिमा की दरकार लगाते थे। देवाच कृष्ण भट्ट ने अपने महाकाव्य ‘ईश्वर विलास’ में लिखा है कि सवाई जयसिंह ने इस महल में इसरीसिंह को अपना उत्तराधिकारी घोषित किया था। महाराजा प्रतापसिंह के समय सूरत खाने के चित्रकार एवं पोथीखाने के ग्रंथकार इसी सभा मण्डप में बैठकर अपन कार्य करते थे।
मुबारक महल (वैलकम पैलेस)
जयपुर राजप्रासाद परिसर (सिटी पैलेस) में स्थित इस महल का निर्माण महाराजा सवाई माधोसिंह द्वितीय सेव निर्देशन में करवाया था। रियासत के मेहमानों को ठहराने के लिए सन् 1900 में निर्मित इस महल में मुगल, यूरोपीय और राजस्था कला का अद्भुत समन्वय है। इसमें 1911 में किंग एडवर्ड साम एवं क्वीन एलेक्जेन्ड्रा तथा 1922 में प्रिंस ऑफ वेल्चर ठहरे थे। मुबारक चंद्रमहल के दक्षिण में भव्य प्रीतम निवास बना हुआ है, जिसे सवाई प्रतापसिंह ने बनवाया था।
आमेर के महल:
कछवाह राज्य मान सिंह द्वारा 1592 मे निर्मित ये महल हिन्दू – मुस्लिम शैली के समन्वित रूप है । ये आमेर की मावठा झील के पास पहाड़ी पर स्थित है। मुगल बादशाह बहादुरशाह ने सवाई जयसिह के कल मे इस पर आक्रमण करके इसे जितकर एस्क नाम मोमीदाबाद रख दिया । यूनेशकों ने 21 जून 2013 को राजस्थान के 6 किलों को विश्व विराशत सूची मे सामील करने की घोषणा की जिसमे आमेर का दुर्ग भी सामील था ।
सामोद महल
महल का प्रमुख आकर्षण शीशमहल है। शीशमहल का निर्माण रावल शिवसिंह ने 19वीं सदी के उत्तरार्द्ध में किया था। सामोद में कलात्मक एवं विशाल महलों में चित्रकारी के अलावा काँच एवं मीनाकारी का बेमिसाल काम है। इसकी छतों एवं स्तम्भों पर सुंदर काँच का काम आमेर महल की ही अनुकृति है। यहाँ के भित्ति चित्रों में धार्मिक जीवन के अलावा साहित्यिक एवं सामाजिक जीवन को भी झाँकी मिलती है। यहाँ सुल्तान महल भी दर्शनीय है। सामोद में सात बहनों का मंदिर भी है। जयपुर में स्थित इस भव्य सर्किल पर जयपुर के संस्थापक सवाई जयसिंह की मूर्ति लगी हुई है। इस मूर्ति के वास्तुकार स्व. महेन्द्र कुमार दातर थे।
विराटनगर
जयपुर- अलवर मार्ग पर स्थित प्राचीन स्थल, जहाँ बौद्ध मंदिर के अवशेष मिले हैं। कहा जाता है कि पाण्डवा ने यहाँ अपने अज्ञातवास का एक वर्ष व्यतीत किया था। यहाँ भीम को डूंगरी (पाण्डु हिल) स्थित है। यहाँ अशोक के शिलालेख भी मिले हैं। विराट नगर में अकबर द्वारा बनवाई गई टकसाल, मुगल गार्डन एवं जहाँगीर द्वारा बनाये गये स्मारक स्थित है। जयपुर के दक्षिण में निकटवतों कस्बा जहाँ 11वीं सदी के संधाजी के जैन मंदिर प्रसिद्ध हैं।
नाहरगढ़
नाहरगढ़ का निर्माण जयपुर के संस्थापक सवाई जयसिह द्वारा मराठों से सुरक्षा हेतु 1734 ई। मे करवाया था । इसे सूदर्शनगढ़ भी कहते है ।
जयपुर नरेश ने भारत मे 5 वेधशालाए बनवाई जो निम्न है – मथुरा ,जयपुर , दिल्ली, उज्जैन बनारस। सन 1734 मे निर्मित जयपुर वेधशाला 5 वेधशालों मे सबसे बड़ी वेधशाला है । एस्क निर्माण कार्य 1738 मे जाकर पूर्ण हुआ। एस्क प्रारम्भिक नाम यंतर-मंतर था। इसमें विश्व की सबसे बड़ी पाषाण दीवार घड़ी लगी हुई है। जंतर – मंतर को 2010 मे यूनेस्को की विश्व विरासत सूची मे सामील गया ।
ईसरलाट (सरगसूली)
जयपुर मे त्रिपोलिया गेट के निकट स्थित इस साथ खंडों की इमारत को महाराजा ईश्वरी सिह ने बनवाया था।
जयपुर का इतिहासः अन्य महत्वपूर्ण स्थल
- मुबारक महल (वैलकम पैलेश)
- प्रीतम निवास
- माधो निवास
- जय निवास उधान
- सवाई मानसिह संग्रहालय
- कचहरिया
- दीवान-ए-खास
- शीश महल
- पन्ना मीन की बावड़ी
- रत्नाकर की हवेली
- जमुरावगढ़ बांध
- सामोद महल
- मोती डूंगरी
- अल्बर्ट हाल
- गेटोर की छतरिया
- राजा मानसिह की छतरी
- महारानी की छतरी
- साल्ट म्यूजियम
- विज्ञान उधान
- छपरवाड़ा बांध
- सलीम मंजिल
- मुगल गेट
- आनंद पोल
- केसर क्यारी
- मोती महल
जयपुर का इतिहासः व जयपुर के प्रमुख मंदिर
गलताजी जयपुर :
‘जयपुर के बनारस’ के नाम से प्रसिद्ध प्राचीन पवित्र कुंड। जहा गालव ऋषी का आश्रम था । वर्तमान मे बंदरों की अधिकता के कारण यह Monkey Valley के नाम से प्रसिद्ध है । गलता को ‘ उत्तर तोतादररी भी कहा जाता है । संत कृष्णदास पयहारी ने यहा रमानंदी संप्रदाय की स्थापना की थी ।
शीतलामाता का मंदिर ,चाकसू
चाकसू मे शील डूंगरी नामक पहाड़ी पर चेचक से रक्षा करनेवाली देवी शीतलामाता का मंदिर है । ए मंदिर जयपुर के महाराजा माधोसिह द्वितीय ने बनवाया था। शीतलामाता का परंपरागत पुजारी कुम्हार होता है । शीतलामाता खंडित अवस्था मे पूजी जाने वाली एकमात्र लोक देवी है । गधा इस देवी का वाहन मन जाता है ।
श्री गोविंददेवजी का मंदिर
गौड़ीय संप्रदाय के इस मंदिर का निर्माण 135 ई. मे जयपुर के संस्थापक सवाई जयसिह ने करवाया था। यहा वृंदावन से ल गोविंद देवजी मूर्ति की स्थापना की गई ।
शिलामाता का मंदिर (अन्नपूर्णा देवी)
शिलामाता जयपुर के राजवंश की आराध्य देवी है । शिलामाता की मूर्ति को जयपुर के शासक महाराजा मानसिह प्रथम 1604 मे बंगाल से लाए थे । वर्तमान बने मंदिर का निर्माण सवाई मान सिंह द्वितीय ने करवाया
जमुवाय माता का मंदिर
इस विशाल मंदिर का निर्माण कछवाह राजवंश के संस्थापक दुलहराय ने करवाया था । जमुवाय माता आमेर के कछवाह राजवंश की कुलदेवी है ।
जयपुर का इतिहासः मे अन्य प्रमुख मंदिर
- देवयानी मंदिर
- गणेश मंदिर
- बिड़ला मंदिर
- जगत शिरोमणि मंदिर आमेर
- अंबिकेश्वर महादेव का मंदिर
- बिहारी जी का मंदिर
- कुंज बिहारी का मंदिर
- राधा – माधव मंदिर
- चुलगिरी के जैन मंदिर
- नकटिमाता का मंदिर
- खलकाणी माता का मंदिर
- वामांदेव मंदिर
- कल्कि मंदिर
- ज्वाला माता का मंदिर
- सूर्य मंदिर
जयपुर की स्थापना किसने की ?
जयपुर की स्थापना कब की गई?
जयपुर का क्षेत्रफल कितना है ?
बाणगंगा का मेला किस जिले मे लगता है?