मेवाड़ का इतिहास | History of Mewar | Mewad ka Itihas Hindi

मेवाड़ का इतिहास | History of Mewar  |  Mewad ka Itihas Hindi 


मेवाड के प्राचीन नाम
1. मेदपाट
2. प्राग्वाट
3. शिवि
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मेवाड़ का इतिहास | History of Mewar  |  Mewad ka Itihas Hindi 

  • मेवाड में गुहिल वंश का शासन था। गुहिल सूर्यवंशी हिन्दू शासक थे। इस वंश की 24 शाखाओं में से मेवाड़ के गुहिल सर्वप्रमुख थे। यह विश्व में दीर्घकालीन शासन करने वाला राजवंश है।
  • मुस्लिम इतिहासकार फरिश्ता के अनुसार “मेवाड़ के राणा बहुत प्राचीनकाल से राज्य करते आ रहे है और इनका राज्य मुसलमान धर्म की उत्पति के पहले से भी मौजूद है”।

गुहिल

यह गुहिल वंश का संस्थापक था। इसे वल्लभी [गुजरात] के शिलादित्य का पुत्र माना जाता है कर्नल जेम्स टॉड के अनुसार ] | इसकी माता का नाम पुष्पावती था। गौरीशंकर हीराचंद ओझा के अनुसार इसने 566 ईस्वी में मेवाड में शासन किया था (सामोली अभिलेख के आधार पर)। 1869 ईस्वी में आगरा से गुहिल के 2000 चांदी के सिक्के प्राप्त हुऐ है।   मेवाड़ का इतिहास

सामोली अभिलेख [646 ६४६ ईस्वी] – यह शीलादित्य का अभिलेख है जो गुहिल का पाँचवा वंशधर था। गुहिल भोज-महेन्द्र नाग-शीलादित्य । यह इस वंश का प्राचीनतम अभिलेख है। यह अभिलेख गुहिल वंश का समय निर्धारण करता है। इसके अनुसार वटनगर [सिरोही] से आये हुऐ महाजन समुदाय के मुखिया जैतक महत्तर ने आरण्यकगिरि में अरण्यवासिनी देवी[जावर माता का मन्दिर बनवाया था। यह मन्दिर 18 प्रकार के गायकों से भरा रहता था। जैतक ने ‘देवबुक’ नामक स्थान पर अग्नि में प्रवेश कर लिया था। यह अभिलेख जावर के खनन उद्योगा आगर पर भी प्रकाश डालता है।

बापा रावल – [734-753]

गौरीशंकर हीराचंद ओझा के अनुसार इसका वास्तविक नाम कालभोज था ।

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मेवाड़ का इतिहास | History of Mewar  |  Mewad ka Itihas Hindi 

यह हारित ऋषि का शिष्य था। हारित ऋषि के आशिर्वाद से 734 ईस्वी में मानमोरी को हराकर चित्तौड़ पर अधिकार कर लेता है [राजप्रशस्ति के अनुसार]। इसकी राजधानी नागदा [ उदयपुर] थी। कैलाशपुरी [ उदयपुर में एकलिंगजी [लकुलीश] का मन्दिर बनवाया। मेवाड़ के शासक स्वयं को एकलिंगजी का दीवान मानते थे। यह मुस्लिम सेना को हराते हुऐ गजनी [अफगानिस्तान ] तक चला गया तथा वहाँ के शासक सलीम को हटाकर अपने भान्जे को राजा बनाया। इतिहासकार चिन्तामणि विनायक वैद्य ने इसकी तुलना ‘चार्ल्स मार्टेल’ [फ्रांसीसी सेनापति, जिसने युरोप में सर्वप्रथम मुसलमानों को पराजित किया] से की है। इसका 115 ग्रेन का स्वर्ण सिक्का प्राप्त हुआ है। बापा के सैन्य ठिकाने के कारण पाकिस्तान के शहर का नाम रावलपिंडी पडा।

अल्लट

अन्य नाम – आलुरावल

इसने आहड [उदयपुर] को अपनी दूसरी राजधानी बनाया तथा यहाँ पर वराह [ विष्णु मन्दिर का निर्माण करवाया एवं मेवाड में नौकरशाही [ प्रशासनिक व्यवस्था] की स्थापना की थी [सारणेश्वर प्रशस्ति ] | आटपुर [आहड] से प्राप्त शक्तिकुमार के अभिलेख [977 ईस्वी) के अनुसार अल्लट की माता महालक्ष्मी राठौड [राष्ट्रकूट] वशं की थी तथा अल्लट ने हूण राजकुमारी हरिया देवी से विवाह किया था तथा हरिया देवी ने हर्षपुर नामक गाँव की स्थापना की।

सारणेश्वर प्रशस्ति [953 ईस्वी]-उदयपुर के सारणेश्वर नामक शिवालय से प्राप्त यह प्रशस्ति पहले आहड के वराह मन्दिर में स्थित थी। इसमें अल्लट, उसकी माता महालक्ष्मी तथा उसके पुत्र नरवाहन का उल्लेख है। इसमें अल्लट के प्रशासनिक अधिकारीयों के नाम पद सहित उल्लेखित है। वराह मन्दिर के गोष्ठिकों[ चन्दा देने वाले की नामावली भी दी गई है। तत्कालीन कर प्रणाली तथा मन्दिर की निर्वाह व्यवस्था की जानकारी प्राप्त होती है। उस समय आहड में कर्नाटक, मध्यदेश, लाट [ गुजरात का भाग] टक्क [पंजाब का भाग ] के व्यापारी भी रहते थे। वराह मन्दिर का निर्माण उत्तम सूत्रधार अग्रट ने किया तथा प्रशस्ति के लिपिकार कायस्थ पाल और वेलक थे।

जैत्रसिंह [1213-1253 ईस्वी]

भूताला [ उदयपुर के युद्ध [1227 ईस्वी में जैत्रसिंह ने दिल्ली के सुल्तान इल्तुतमिश को हराया। यह जानकारी जयसिंह सूरी की पुस्तक हम्मीर मदमर्दन से मिलती है। इसमें इल्तुतमिश को हम्मीर कहा गया है। इल्तुतमिश की लौटती हुई सेना ने नागदा को तहस-नहस कर दिया इसलिये जैत्रसिंह ने चितौड [परमारों से छीनकर] को राजधानी के रूप में स्थापित किया। डॉ दशरथ शर्मा इसके शासनकाल को मध्यकालीन मेवाड का स्वर्णकाल मानते है। गौरीशंकर हीराचन्द ओझा के अनुसार “दिल्ली के गुलाम वंश के सुल्तानों के समय में मेवाड के राजाओं में सबसे प्रतापी और बलवान राजा जैत्रसिंह ही हुआ, जिसकी वीरता की प्रशंसा उसके विरोधियों ने भी की है”।

जयसिंह सूरी धोलका [गुजरात] के बघेल [ सोलंकी] राणा वीरधवल के मंत्रियों [ वस्तुपाल-तेजपाल ] का कृपापात्र था तथा उसने हम्मीर मदमर्दननाटक में वीरधवल की प्रशंसा की है। इसकी अन्य रचना वस्तुपाल प्रशस्तिहै।

 

रत्नसिंह [1302-1303 ईस्वी]

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1303 ई. में दिल्ली के सुल्तान अलाउद्दीन खिलजी ने मेवाड पर आक्रमण किया।

आक्रमण के कारण

1. सुल्तान की साम्राज्यवादी महत्वाकाक्षां, 

2. चितौड का सामरिक महत्व (सुदृढ पहाडी, विशाल प्राचीर, अन्न-जल भंडारण),

3. चितौड का व्यापारिक महत्व ( दिल्ली से गुजरात व मालवा मार्ग पर स्थित ), 

4. मेवाड का बढता हुआ प्रभाव, 

5. सुल्तान के लिए प्रतिष्ठा का प्रश्न (सुल्तान के गुजरात जाते समय रत्नसिंह के पिता समरसिंह ने उससे मार्ग कर वसूल लिया था), 

6. सुल्तान की रत्नसिंह की रानी पद्मिनी को प्राप्त करने की लालसा ।

  • इस आक्रमण के समय चितौड का प्रथम साका हुआ जिसके तहत रानी पद्मिनि ने 1600 अन्य महिलाओं सहित जौहर किया तथा रत्नसिंह ने अपने सेनापतियों गोरा व बादल सहित केसरिया किया।
  • 25 अगस्त 1303 ईस्वी को सुल्तान ने चितौड पर अधिकार कर लिया तथा अगले दिन 30,000 निर्दोष नागरिकों का नरसंहार करवाया। उसने अपने पुत्र खिज्र खाँ को चितौड सौंपकर इसका नाम बदलकर खिजाबाद कर दिया। सुल्तान का दरबारी इतिहासकार अमीर खुसरो अपनी पुस्तक खजाईन-उल फुतुह (तारीख-ए-अलाई) में इस आक्रमण का आँखों देखा वर्णन करता है। 1325 ईस्वी के चितौड़ के धाईबी पीर की दरगाह के फारसी अभिलेख में चितौड का नाम खिजाबाद मिलता है।
  • खिज्र खाँ ने गंभीरी नदी पर पुल का निर्माण करवाया। उसने चितौड़ की तलहटी में एक मकबरे का निर्माण करवाया जिसके फारसी अभिलेख ( 1310 ईस्वी) में अलाउद्दीन खिलजी को दूसरा सिकंदर, ईश्वर की छाया तथा संसार का रक्षक कहा गया है।
  • कालान्तर में चितौड मालदेव सोनगरा ( मूछला मालदेव) को सौंप दिया गया।

यह जालौर के शासक कान्हडदेव सोनगरा का भाई था। जालौर के पतन ( 1311ईस्वी) के बाद मालदेव सोनगरा सुल्तान की सेवा में चला गया था।

1540 ईस्वी में मलिक मुहम्मद जायसी द्वारा अवधी भाषा में लिखित पद्मावतमहाकाव्य में रानी पद्मिनी को सिंहल द्वीप की राजकुमारी बताया गया। इसके अनुसार पद्मिनी के पिता गन्धर्वसेन तथा माता चम्पावती थी। राघव चेतन नामक ब्राह्मण ने अलाउद्दीन खिलजी को पद्मिनी की सुन्दरता के बारे में बताया था। अबुल फजल ( अकबरनामा), फरिश्ता ( गुलशन-ए-इब्राहिमी), हाजी उद्दवीर (जफरुलवली), कर्नल टॉड, इतालवी यात्री मनूची (स्टोरियो डी मोगोर), मुहणौत नैणसी दशरथ शर्मा ने भी इस कहानी को कुछ हेर फेर के साथ स्वीकार किया है। सूर्यमल्ल मीसण ने इसे स्वीकार नहीं किया है।   मेवाड़ का इतिहास

 

हम्मीर (1326-64)

यह सिसोदा (राजसमंद) का सामंत था । यहाँ से गुहिल वंश की सिसोदिया शाखा प्रारम्भ हुई। इसने राणा उपाधि का प्रयोग किया। रतनसिंह रावल शाखा का अन्तिम शासक था )

1326 ईस्वी में मालदेव सोनगरा के पुत्र बनवीर / जैसा को हराकर चितौड़ पर अधिकार कर लेता है।

सिंगोली (बांसवाडा) के युद्ध में मुहम्मद-बिन-तुगलक को हराया।

कर्नल जेम्स टॉड ने इसे प्रबल हिन्दू कहा है। कुम्भलगढ प्रशस्ति में इसे विषम घाटी पंचानन कहा गया है। रसिकप्रिया में इसे वीर राजा कहा गया है। इसे मेवाड का उद्धारक भी कहा जाता है।

इसने चित्तौड में बरवडी (अन्नपूर्णा) माता का मन्दिर बनवाया। यह मेवाड के गुहिल वंश की ईष्ट देवी है। (बाण माता गुहिल वंश की कुलदेवी है)।

सिसोदा रावल रणसिंह / कर्णसिंह के समय राहप को दिया गया था। राहप के वंशज लक्ष्मण सिंह अपने पुत्र अरिसिंह (हम्मीर के पिता) के साथ चित्तौड़ के प्रथम साके में वीरगति को प्राप्त हुए। हम्मीर के चाचा अजय सिंह ने हम्मीर को सिसोदा का सामन्त बनाया था। अजय सिंह के पुत्र सज्जन सिंह दक्षिण भारत चले गये तथा शिवाजी उन्ही के वंशज थे।

 

महाराणा लाखा (लक्ष सिंह ) – (1382-1421 ई)

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  • जावर (उदयपुर) में ‘चाँदी की खान’ प्राप्त हुई।
  • एक बन्जारे ने पिछोला (उदयपुर) झील’ का निर्माण करवाया था। (बन्जारे – घुम्मक्कड व्यापारी)
  • पिछोला झील के पास नटनी का चबूतरा बना हुआ है।
  • ‘कुम्भा हाड़ा (राणा लाखा का साला) नकली बूँदी की रक्षा करते हुए मारा गया था।
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  • मारवाड के राजा चूण्डा की बेटी हंसाबाई की शादी मेवाड़ के राणा लाखा से हुई
  • इस समय लाखा के बेटे चूण्डा ने प्रतिज्ञा की कि वह मेवाड़ का अगला राजा नहीं बनेगा। बल्कि हंसाबाई का बेटा मेवाड़ का अगला राजा होगा।
  • चूण्डा को मेवाड़ का भीष्म कहा जाता है।
  • चूण्डा के त्याग के कारण उसे कई विशेषाधिकार दिये गये- जैसे
  1. मेवाड़ के 16 प्रथम श्रेणी ठिकानों में से 4 चूण्डा को दिये गये थे। इनमें सलूम्बर
  2. भी शामिल था। सलूम्बर (उदयपुर) सबसे बड़ा ठिकाना था। 
  3. सलूम्बर का सामन्त मेवाड़ के राजा का राजतिलक करेगा ।
  4. सलूम्बर का सामन्त मेवाड़ की सेना का सेनापति होगा।
  5. मेवाड़ के सभी राजपत्रों पर राणा के साथ सलूम्बर का सामन्त भी हस्ताक्षर करेगा।
  6. राणा की अनुपस्थिति में सलूम्बर का सामन्त राजधानी को सम्भालेगा ।

हरावल : सेना का अगला भाग                                                                                                

चन्दावल : सेना का पिछला भाग

 

महाराणा मोकल (1421-33ई.)

पिता राणा लाखा, माता- हंसाबाई
  • प्रथम संरक्षक चूण्डा
  •  हंसाबाई के अविश्वास के कारण चूण्डा मेवाड़ छोड़कर मालवा चला गया। (मालवा का सुल्तान होशंगशाह)
  • द्वितीय संरक्षक  :-रणमल     मेवाड़ का इतिहास
  • मोकल ने एकलिंग मंदिर का परकोटा ( चारदिवारी) बनवाया।
  • चित्तौड़ में समिद्वेश्वर मंदिर का पुननिर्माण करवाया।
  • पहले इस मंदिर को त्रिभुवन नारायण मंदिर कहा जाता था तथा इसे ‘भोज परमार ‘ ने बनवाया था।
  • चित्तौड़ में जलाश्य सहित द्वारिकानाथ (विष्णु) का मंदिर बनवाया।
  • अपनी बाघेला वंश की रानी गौराम्बिका की स्वर्ग प्राप्ति के निमित्त श्रृंगीऋषि के स्थान में बावड़ी का निर्माण करवाया।
  • अपने भाई बाघसिंह के नाम से बाघेला तालाब का निर्माण करवाया।
  • 1433 ई. में गुजरात के अहमदशाह ने मेवाड़ पर आक्रमण किया। इस समय चाचा, मेरा तथा महपा पंवार ने जीलवाड़ा (राजसमंद) नामक स्थान पर मोकल की हत्या कर दी।
हस्तिकुण्डी अभिलेख – 997 ई.

बीजापुर (पाली) के निकट हस्तिकुंडी नामक स्थान से प्राप्त हुआ। इसके अनुसार जब मालवा के परमार राजा मुंज (वाक्पतिराज, अमोघवर्ष) ने मेवाड़ पर चढ़ाई कर आघाट (आहड़ ) को तोड़ा, उस समय राठौड़ राजा ममट के पुत्र धवल ने मेवाड़ की सहायता की थी। इस समय मेवाड़ का शासक शक्ति कुमार था।

  

श्रृंगी ऋषि अभिलेख 1428ई.

उदयपुर में एकलिंग जी के समीप यह अभिलेख प्राप्त हुआ जो संस्कृत भाषा में लिखा गया है। यह अभिलेख मेवाड़ महाराणा मोकल के समय का है। इस अभिलेख के अनुसार मोकल ने अपनी बाघेला रानी गौराम्बिका की मुक्ति के लिए यहाँ पर कुण्ड का निर्माण करवाया। इस अभिलेख से हम्मीर से लेकर मोकल तक मेवाड़ के शासकों की जानकारी मिलती है। इसके अनुसार हम्मीर ने जीलवाड़ा, ईडर, पालनपुर को जीता तथा भीलों को हराया। क्षेत्र सिंह ने मालवा के प्रांतपति अमीशाह को हराया। लक्ष सिंह ने काशी, प्रयाग तथा गया को कर मुक्त करवाया। मोकल ने नागौर के फिरोज खान तथा गुजरात के अहमद शाह को हराया तथा उसने एकलिंग मंदिर की प्राचीर तथा यहाँ तीन द्वारों का निर्माण करवाया। मोकल ने 25 तुलादान किये थे जिनमें से एक पुष्कर के वराह मंदिर में किया गया था। मोकल ने इस कुण्ड के निर्माण की आज्ञा गुरू त्रिलोचन से प्राप्त की थी तथा अपने अन्य रानी मायापुरी के साथ प्रतिष्ठा समारोह में भाग लिया था। रचियता – कविराज वाणीविलास योगीश्वर, उत्कीर्णक-फना

 

महाराणा कुंभा (1433 – 1468ई.)

पिता – मोकल, माता – सौभाग्यवती परमार
मेवाड़ का इतिहास | History of Mewar  | Hindi Mewad ka Itihas Hindi
मेवाड़ का इतिहास | History of Mewar  | Hindi Mewad ka Itihas Hindi 
  • संरक्षक रणमल
  • रणमल की सहायता से राणा कुम्भा ने अपने पिता की हत्या का बदला लिया था।
  • मेवाड़ दरबार में रणमल का प्रभाव बढ़ गया तथा उसने सिसोदियों के नेता राघवदेव (चूण्डा का भाई) को मरवा दिया।
  • हंसाबाई ने चूण्डा को मालवा से वापस बुलाया।
  • रणमल को भारमली की सहायता से मार दिया गया।
  • रणमल का बेटा जोधा भाग गया तथा उसने बीकानेर के पास काहुनी नामक गांव में शरण ली। 
  • चूण्डा ने राठौड़ों की राजधानी मंडौर (जोधपुर) पर अधिकार कर लिया।

आंवल- बांवल की संधि (1453

जोधा + कुम्भा
  • सोजत (पाली) का मेवाड व मारवाड़ की सीमा बनाया गया। CADE
  • जोधा को मंडौर वापस दे दिया गया।
  • कुम्भा के बेटे रायमल की शादी जोधा की बेटी श्रृंगार कवर से की गई।

सारंगपुर (मध्यप्रदेश) का युद्ध – 1437 ई. 

कुम्भा महमूद खिलजी ( मालवा )
  • कारण-
  1. महमूद खिलजी ने मोकल के हत्यारों (महपा पंवार, चाचा का पुत्र एक्का) को शरण दी थी।  
  2. कुम्भा ने महमूद खिलजी के विद्रोही उमर खाँ को सैनिक सहायता देकर सारंगपुर पर अधिकार करवा दिया था।
  3. कुम्भा तथा महमूद खिलजी की साम्राज्य विस्तार की महत्वकांक्षाएँ। 
  • कुम्भा जीत गया तथा उसने महमूद खिलजी को गिरफ्तार कर लिया था। इस जीत की याद में चित्तौड़ में विजय स्तम्भ का निर्माण करवाया।

चम्पानेर की संधि (1456 ई.) 

महमूद खिलजी ( मालवा ) + कुतुबुद्दीन शाह (गुजरात)
  • उद्देश्य राणा कुम्भा को हराकर मेवाड़ के दक्षिणी भाग पर गुजरात तथा मेवाड़ के खास भाग तथा अहीरवाड़ा पर मालवा का अधिकार करना।

बदनौर (भीलवाड़ा) का युद्ध – ( 1457 ई.)

  • कुम्भा ने मालवा तथा गुजरात की संयुक्त सेना को हराया था। कीर्ति स्तम्भ प्रशस्ति व रसिक प्रिया से यह जानकारी मिलती है।
  • कुभा ने सिरोही के सहसमल देवड़ा को हराया। सहसमल देवड़ा ने गुजरात के सुल्तान कुतुबुद्दीन शाह की सहायता की थी। इस समय कुम्भा ने नरसिंह डोडिया के नेतृत्व में सेना भेजी थी।
  • नागौर का उत्तराधिकार संघर्ष- फिरोज खाँ की मृत्यु के बाद उसके बेटे शम्स खाँ तथा उसके भाई मुजाहिद खाँ में उत्तराधिकार संघर्ष हो गया। जिसमें कुम्भा ने शम्स खाँ की सहायता की तथा मुजाहिद खाँ को हराया। कालान्तर में शम्स खाँ ने नागौर किले की किलेबन्दी प्रारम्भ की अतः कुम्भा ने नागौर पर आक्रमण कर दिया। शम्स खाँ भाग कर गुजरात के कुतुबुद्दीन शाह के पास गया तथा अपनी पुत्री की शादी उससे की। कुतुबुद्दीन शाह तथा शम्स खाँ ने मिलकर मेवाड़ पर आक्रमण किया परन्तु कुम्भा ने इन्हें हरा दिया। इस प्रकार नागौर का उत्तराधिकार संघर्ष मेवाड़ व गुजरात के बीच विवाद का कारण बना।

कुम्भा की सांस्कृतिक उपलब्धियाँ

  1. स्थापत्य कला- कुम्भा को राजस्थान की स्थापत्य कला का जनक कहा जाता है।
  1.     विजय स्तम्भ
                    अन्य नाम कीर्ति स्तम्भ विष्णु ध्वज, गरूड़ ध्वज, मूर्तियों का अजायबघर भारतीय मूर्तिकला का विश्वकोष । गोपीनाथ शर्मा ने इसे हिन्दू देवी-देवता से सजाया हुआ एक व्यवस्थित संग्रहालय बताया है तथा गोरीशंकर हीराचन्द ओझा ने इसे पौराणिक देवताओं के अमूल्य कोष की संज्ञा दी है 
  • यह एक 9 मंजिला ईमारत है।      मेवाड़ का इतिहास
  • लम्बाई 122 फीट चौड़ाई 30 फीट
  • इसकी 8वीं मंजिल में कोई मूर्ति नहीं है।
  • तीसरी मंजिल में 9 बार अरबी भाषा में अल्लाह शब्द लिखा हुआ है।
  • वास्तुकार जैता पूंजा, पोमा, नापा (पांचवीं मंजिल में इनके नाम दिये गये हैं)
  • कीर्ति स्तम्भ की प्रशस्ति के लेखक :- अत्रि और महेश ।
  • मेवाड़ महाराणा स्वरूप सिंह ने इसका पुनर्निर्माण करवाया।
  • जेम्स टॉड ने इसकी तुलना कुतुबमीनार से की।
  • फर्ग्यूसन ने इसकी तुलना रोम के टॉर्जन टॉवर के साथ की थी।
  • विजय स्तम्भ राजस्थान की पहली इमारत है, जिस पर डाक टिकट जारी किया गया था।
  • प्रतीक चिन्ह-
  1. राजस्थान पुलिस  
  2. राजस्थान माध्यमिक शिक्षा बोर्ड 
  3. अभिनव भारत (वीर सावरकर का संगठन) 

जैन कीर्ति स्तम्भ- चित्तौड़ किले में 7 मंजिला इमारत है।

  • 12वीं शताब्दी में जैन व्यापारी जीजा शाह बघेरवाल ने इसका निर्माण करवाया था
  • यह भगवान आदिनाथ (ऋषभदेव ) को समर्पित है इसिलए इसे आदिनाथ स्तम्भ भी कहा जाता है।

 

2. किलें:- 
       कविराजा श्यामलदास जी की पुस्तक वीर विनोद के अनुसार कुम्भा – मेवाड के 84 में से 32 किलों का निर्माण         करवाया।
1. कुम्भलगढ़ – राजसमंद में स्थित है।
  • वास्तुकार :- मण्डन
  • कुम्भलगढ़ मेवाड़ की संकटकालीन राजधानी थी।
  • इसे मेवाड़ मारवाड़ का सीमा प्रहरी कहा जाता है। इसका सबसे उपरी स्थान कटारगढ़ है जो कुम्भा का निजी आवास था।
  • इसे मेवाड़ की आँख कहा जाता है।
  • कुम्भलगढ़ प्रशस्ति का लेखक महेश। यह प्रशस्ति सामादेव मंदिर के पास लगी हुई है। 
  • इस प्रशस्ति में कुम्भा को ‘धर्म एवं पवित्रता का अवतार’ तथा ‘कर्ण व भोज के समान दानवीर बताया
2. अचलगढ़ (सिरोही)
  • 1452 ई. में कुम्भा ने इसका पुनर्निर्माण करवाया।   मेवाड़ का इतिहास
3. बसन्तगढ़ (बासन्ती दुर्ग) (सिरोही)
4. मचान दुर्ग (सिरोही)
     मेरों पर नियंत्रण हेतु
5. भोट दुर्ग (उदयपुर) 
    भीलों पर नियंत्रण हेतु ।
6. बैराठ दुर्ग (भीलवाड़ा)
3. मंदिर:- 
  •  चित्तौड़गढ़, कुम्भलगढ़ तथा अचलगढ़ में विष्णु भगवान के कुम्भस्वामी मंदिरों का निर्माण करवाया।
  •  एकलिंग जी में विष्णु मंदिर (मीरा मंदिर) का निर्माण करवाया।
  •  श्रृंगार चंवरी मंदिर (शांतिनाथ जैन मंदिर) –

             इसका निर्माण वेला भंडारी (चित्तौड़ के कोषाध्यक्ष) ने करवाया।

  • रणकपुर (पाली) जैन मंदिर
           1439 ई. में जैन व्यापारी धरणकशाह ने इन मंदिरों का निर्माण करवाया।
          मुख्य मंदिर – चौमुखा मंदिर- इस मंदिर में भगवान आदिनाथ की मूर्ति है। इस मंदिर में 1444 स्तम्भ है                   इसलिए इसे स्तम्भों का अजायबघर कहा जाता है। वास्तुकार देपाक ।
2. साहित्य
  • कुम्भा एक अच्छा संगीतज्ञ था।
  • यह वीणा बजाता था। यह जानकारी कीर्ति स्तम्भ प्रशस्ति से प्राप्त होती है।
  • संगीत सारंग व्यास
  1. पुस्तकें
  1.  सुधा प्रबंध
  2. कामराज रतिसार (7 भाग)
  3. संगीत सुधा
  4. संगीत मीमांसा
  5. संगीत क्रम दीपिका
  6. संगीत राज ( 5 भाग)
  • पाठ्य रत्न कोष
  • गीत रत्न कोष
  • नृत्य रत्न कोष
  • वाद्य रत्न कोष
  • रस रत्न कोष
कुम्भा की टीकाएँ
1. जयदेव की गीत गोविन्द पुस्तक पर रसिक प्रिया लिखी।
ii. सारंगधर की संगीत रत्नाकर पर टीका लिखी।
iii. बाणभट्ट की चंडीशतक पर टीका लिखी।
iv. कुम्भा ने चार नाटक लिखे थे।
  •  मुरारि संगति- कन्नड़
  •  रस नन्दिनी – मेवाड़ी
  •  नन्दिनी वृति – मराठी
  • अतुल्य चातुरी- संस्कृत
v. कुम्भा मराठी, कन्नड, मेवाड़ी भाषाओं का विद्वान था ।
दरबारी विद्वान
i. कान्ह व्यास :- एकलिंग महात्मय (पुस्तक) –
  • इस पुस्तक के अनुसार कुम्भा वेद, स्मृति, मीमांसा, उपनिषद, व्याकरण व राजनीति में रूचि रखता था।
  • इसका पहला भाग राजवर्णन कहलाता है जो कुम्भा ने लिखा था ।
ii. मेहाजी :-  तीर्थमाला (पुस्तक) – इस पुस्तक में 120 तीर्थों का वर्णन किया गया है। कवि मेहा जी कुम्भलगढ़ तथा रणकपुर मंदिरों के निर्माण की जानकारी देते है तथा रणकपुर मंदिर के प्रतिष्ठा समारोह में स्वयं उपस्थित थे। मेहा जी के अनुसार कुम्भा हनुमान जी जो मूर्तियाँ सोजत व नागौर से लाया था उन्हें कुम्भलगढ़ व रणकपुर में स्थापित किया गया था।
iii. मण्डन –
  • वास्तुसार
  • देवमूर्ति प्रकरण (रूपावतार)
  • राजवल्लभ (भूपतिवल्लभ)
  • रूपमण्डन (मूर्तिकला की जानकारी )
  • कोदंड मंडन धनुष निर्माण की जानकारी
iv. नाथा – यह मण्डन का भाई था।
  • वास्तु मंजरी 
V. गोविन्द – यह मंडन का बेटा था।
  • द्वार दीपिका
  • उद्धार धोरिणी
  • सार समुच्चय (आयुर्वेद की जानकारी)
vi. रमाबाई – यह कुम्भा की बेटी थी।
  • अपने पिता की तरह संगीत में रूचि रखती है।
  • रमाबाई को जावर परगना (क्षेत्र) दिया गया था । उपाधि था। – वागीश्वरी 
vii. हीरानन्द मुनि – कुम्भा के गुरू । कुम्भा ने इन्हें कविराज की उपाधि दी थी। 
viii. तिला भट्ट
ix. सोमदेव सूरि (जैन विद्वान )
x. सोमसुन्दर सूरि (जैन विद्वान )
xi. जयशेखर (जैन विद्वान )
xii. भुवनकीर्ति (जैन विद्वान )
  • कुम्भा ने जैनों का तीर्थयात्रा कर हटा दिया था।

कुम्भा की उपाधियाँ

1. हिन्दू सुरताण (हिन्दूओं का रक्षक )
2. अभिनव भरताचार्य / नव्य भरत (संगीत)
3. राणा रासौ (साहित्य)
4. हाल गुरु (पहाड़ी किले जीतने वाला)
5.चाप गुरु ( धनुर्धर )
6. परम भागवत ( विष्णु भक्त) 
7. आदि वराह (विष्णु भक्त)
  • कुम्मा की हत्या उसके बेटे उदा ने कुम्भलगढ़ किले में की थी।

कीर्तिस्तम्भ प्रशस्तिः

  • 3 दिसम्बर 1460 ई. (मार्गशीर्ष कृष्ण पंचमी विक्रमी संवत 1517 ) 
  • प्रशस्तिकारः अत्रि भट्ट व महेश भट्ट
  • यह प्रशस्ति अनुमानतः 8 शिलाओं पर लिखी गयी थी परन्तु वर्तमान में हमें केवल 2 शिलाएँ ही प्राप्त होती है।
  • इस प्रशस्ति से बापा से लेकर कुम्भा तक मेवाड़ के गुहिलवंशीय शासकों की उपलब्धियाँ प्राप्त होती है।
  • इस प्रशस्ति से कुम्भा के विजय अभियानों की जानकारी मिलती है जैसे मंडोर, सपादलक्ष, नराणा, बसंतपुर, आबू, खंडेला, जांगलदेश, नागौर, गुजरात, मालवा इत्यादि ।    मेवाड़ का इतिहास
  • इस प्रशस्ति में मालवा तथा गुजरात की संयुक्त सेनाओं को पराजित करने का वर्णन मिलता है।
  • इस प्रशस्ति में कुम्भा द्वारा रचित ग्रन्थों की जानकारी मिलती है जैसे: संगीतराज, चंडीशतक तथा गीतगोविन्द की टीका सुधा प्रबंध तथा 4 नाटक
  • कुम्भा के विरूदों की जानकारी प्राप्त होती है जैसेः राजगुरू, दानगुरू, शैलगुरू, अभिनव भरताचार्य……
  • इस प्रशस्ति से कीर्तिस्तम्भ, कुम्भलगढ़, अचलगढ़ आदि में किए गए निर्माण कार्यों की तिथि मिलती है।

कुम्भा ने कीर्ति स्तम्भों के विषय पर एक ग्रंथ (स्तम्भराज ) की रचना की और ‘कीर्ति स्तम्भ’ की शिलाओं पर खुदवाकर स्थापित करवाया जिसके अनुसार उसने जय और अपराजित (ब्रह्मा जी के पुत्र) के मतों को देखकर इस ग्रंथ की रचना की थी।

रायमल (1473-1509 ई.)

राजनीतिक उपलब्धियाँ
  • अपने भाई ऊदा को हराकर (जावर व दाडिमपुर युद्ध) मेवाड़ का शासक बना। ऊदा ने मालवा के सुल्तान गयासशाह से सहायता प्राप्त करने की कोशिश की गिरने से उसकी मृत्यु हो गई । परन्तु बिजली
  • मालवा के सुल्तान गयासशाह को पराजित किया। जिसकी जानकारी 1488 ई. की एकलिंग प्रशस्ति से प्राप्त होती है।
सांस्कृतिक उपलब्धियाँ
  • चित्तौड़ में अद्भुत (अवबदजी) शिव मंदिर का निर्माण करवाया।

अन्य अवबदजी मंदिर

  • नागदा का शांतिनाथ जैन मंदिर
  • चित्तौड़ का समिद्वेश्वर (त्रिभुवननारायण) 

  • एकलिंग जी मंदिर (कैलाशपुरी, नागदा ) का वर्तमान स्वरूप बनवाया     मेवाड़ का इतिहास
  •  इसकी बहन रमाबाई ने जावर में रमास्वामी नामक विष्णु मंदिर व एक कुण्ड का निर्माण करवाया। 
  •  इसकी रानी श्रृंगार कंवर ने घोसुंडी (चित्तौड़) में बावड़ी का निर्माण करवाया। यहाँ लगी प्रशस्ति में श्रृंगार कंवर के पति व पिता (जोधा के वंशों का अन्य परिचय दिया गया है।

                                                             घोसुंडी अभिलेख

  • यह दूसरी शताब्दी ईसा पूर्व का अभिलेख है। 
  • यह वैष्णव (भागवत) धर्म की जानकारी देने वाला राजस्थान का प्राचीनतम अभिलेख है।
  • इस अभिलेख के अनुसार गज वंश के राजा सर्वतात ने अश्वमेघ यज्ञ का निर्माण करवाया था।

पृथ्वीराज
  • यह रायमल का बेटा था।
  • इसे उड़णा राजकुमार कहा जाता है।
  • इसकी रानी तारा के कारण अजमेर किले को तारागढ़ कहा जाता है।
  • पृथ्वीराज की छतरी कुम्भलगढ़ किले में है (12 खम्भे )
जयमल
  •  यह रायमल का बेटा था।
  •  यह सोलंकियों के खिलाफ लड़ता हुआ मारा गया था।

महाराणा सांगा (संग्राम सिंह) (1509-1528 ई.)

मेवाड़ का इतिहास | History of Mewar  | Hindi Mewad ka Itihas Hindi 
  • यह रायमल का बेटा था।    मेवाड़ का इतिहास
  • अपने भाईयों से विवाद होने के बाद सांगा ने श्रीनगर (अजमेर) में कर्मचन्द पंवार के पास शरण ली। d
  • रायमल की मृत्यु के बाद सांगा मेवाड़ का राजा बना। (5 मई 1509)
  • जिस समय महाराणा सांगा मेवाड़ का राजा बना, उस समय दिल्ली में सिकंदर लोदी, गुजरात में महमूद शाह बेगड़ा तथा मालवा में नासिरशाह खिलजी राज्य करता था।
मालवा v/s सांगा
संघर्ष के कारण
सांगा उत्तरी भारत में प्रभाव स्थापित करना चाहता था तथा इसके लिए मालवा पर oring
मालवा की आन्तरिक स्थिति कमजोर थी जो सांगा के लिए अनुकूल अवसर थी। 
चन्देरी के मेदिनीराय ने सांगा से महमूद खिलजी द्वितीय के खिलाफ सहायता मांगी थी।
गागरोण (झालावाड़) का युद्ध 1519 ई. 
सांगा v/s महमूद खिलजी द्वितीय
  • इस समय गागरौण का किला चंदेरी (मालवा) के राजा मेदिनीराय के पास था।
  • सांगा जीत गया।
  •  हरिदास चारण ने महमूद खिलजी द्वितीय को गिरफ्तार कर लिया। इसलिये सांगा ने उन्हें 12 गाँव दिये थे
  • मुस्लिम लेखक ‘निजामुद्दीन’ के अनुसार “लड़ाई में फतह पाने के बाद दुश्मन को गिरफ्तार करके पीछे उसको राज्य दे देना, यह काम आज तक मालूम नहीं की किसी दूसरे ने किया हो।”
गुजरात v/s सांगा
संघर्ष के कारण
  •  सांगा की साम्राज्य विस्तार की नीति
  •  कुम्भा के समय से मेवाड़ व गुजरात में संघर्ष चल रहा था।
  • गुजरात के मुजफ्फरशाह द्वितीय ने सांगा के खिलाफ मालवा के महमूद खिलजी द्वितीय की सहायता की थी। 
  • नागौर का मुस्लिम राज्य सांगा का करद (Tax) राज्य था तथा गुजरात का सुल्तान उसे स्वतंत्र कराना चाहता था। 
  • तत्कालीन कारण :- ईडर का उत्तराधिकार संघर्ष। ईडर में भारमल व रायमल के बीच उत्तराधिकार संघर्ष था जिसमें मुजफ्फरशाह द्वितीय भारमल का समर्थन कर रहा था तथा सांगा रायमल का सहयोगी था।
मेवाड़ का इतिहास | History of Mewar  | Hindi Mewad ka Itihas Hindi

बयाना ( भरतपुर  )का युद्ध 16 फरवरी 1527 ई.

(अफगानिस्तान) बाबर v/s सांगा
  • इस समय बयाना का किला मेहंदी ख्वाजा के पास था।
  • बाबर का सेनापति – सुल्तान मिर्जा
  • सांगा जीत गया।

खानवा (भरतपुर) का युद्ध – 17 मार्च 1527 ई.

(वीर विनोद के अनुसार 16 मार्च )
  • बाबर ने इस युद्ध से पहले जिहाद की घोषणा की।
  • बाबर ने शराब नहीं पीने की प्रतिज्ञा ली   मेवाड़ का इतिहास
  • बाबर ने मुस्लिम व्यापारियों का तमगा कर समाप्त कर दिया।
  • सांगा ने राजस्थान के सभी राजाओं को पत्र लिखे तथा सहायता की मांग की।
आमेर – पृथ्वीराज
 मारवाड़ – मालदेव ( राजा – गांगा)
बीकानेर – कल्याणमल्ल (राजा – जैन- जैतसी)
मेड़ता – वीरमदेव
 सिरोही – अखैराज देवडा
चन्देरी (मध्यप्रदेश) – मेदिनीराय
 ईडर – भारमल
 वागड़ – उदयसिंह
 देवलिया (प्रतापगढ़) – बाघसिंह
सादडी (चित्तौड़) झाला अज्जा –
सलूम्बर – रतनसिंह चुंडावत
 मेवात (अलवर) – हसन खाँ मेवाली
 महमूद लोदी – इब्राहिम लोदी का भाई
  • सांगा के घायल होने के कारण झाला अज्जा (सादड़ी) ने युद्ध का नेतृत्व किया। बाबर जीत गया।
  • उसने ‘गाजी’ की उपाधि धारण की
  • बसवा (दौसा) – घायल सांगा का इलाज किया गया था 
  •  ईरिच (उत्तर प्रदेश) यहाँ पर साथियों ने सांगा को जहर दे दिया था।
  • माडलगढ़ (भीलवाडा) – सांगा की छतरी है।
  • कालपी (उत्तर प्रदेश)- यहाँ पर सांगा की मृत्यु हो गई थी।

खानवा युद्ध के कारण

  • सांगा तथा बाबर की राजनैतिक महत्वकांक्षा में टकराव था ।
  • सांगा ने दिल्ली सल्तनत के कई क्षेत्रों (खंडार (सवाई माधोपुर) के 200 गांव) पर अधिकार कर लिया था।
  • राजपूत-अफगान गठबंधन ।    मेवाड़ का इतिहास
  • बाबर ने सांगा पर वचन भंग का आरोप लगाया था।
  • सांगा ने बयाना के किले पर अधिकार कर लिया था ।

सांगा की हार के कारण

  • सांगा की सेना में एकता की कमी थी। उसकी सेना अलग-अलग सेनापतियों के नेतृत्व में लड़ रही थी।
  • बाबर का तोपखाना।
  • बाबर की तुलगुमा युद्ध प्रणाली (तीन तरफ से आक्रमण )
  • बयाना युद्ध के बाद सांगा ने बाबर को युद्ध की तैयारी का पर्याप्त समय दे दिया था।
  • सांगा खुद युद्ध के मैदान में चला गया था ।
  • सांगा के कई साथियों ने सांगा के साथ विश्वासघात किया तथा युद्ध के दौरान बाबर से मिल गये।
  • जैसे- रायसीन (मध्यप्रदेश) का सलहदी तंवर व नागौर के खानजादै मुस्लिम
  • मुगल सेना ने घोड़ों का प्रयोग किया जबकि राजपूत सेना ने हाथियों का प्रयोग किया
  • मुगल सैनिकों ने राजपूतों की अपेक्षा हल्के हथियारों का प्रयोग किया था।

खानवा का युद्ध का महत्व

  • अफगानों तथा राजपूतों को हराने के बाद बाबर के लिये भारत में राज करना आसान हो गया था।
  • खानवा अंतिम युद्ध था जिसमें राजस्थान के राजपूत राजाओं में एकता देखी गयी थी ।
  • सांगा अन्तिम राजपूत राजा था जिसने दिल्ली को चुनौती देने का प्रयास किया था।
  • राजपूतों की सामरिक कमजोरियाँ उजागर हो गई।    मेवाड़ का इतिहास
  • खानवा के युद्ध के बाद मुगलों की राजपूतों के प्रति भविष्य की नीति का निर्धारण हुआ। कालान्तर में अकबर ने संघर्ष के स्थान पर मित्रता की नीति अपनाई । 
  • सांगा के बाद कोई बड़ा राजा नहीं बचा, जिससे हिन्दू कला व संस्कृति को नुकसान हुआ।

सांगा की उपाधियाँ

  • हिन्दूपत
  • सैनिकों का भग्नावशेष (80 घाव )
  • बाबरनामा के अनुसार सांगा के दरबार में 7 राजा 9 राव व 104 सरदार / सेनापति थे।

भोजराज

  • सांगा का सबसे बड़ा बेटा था।
  •  इसकी शादी मीरा बाई के साथ हुई थी।

रतनसिंह

  • सांगा का बेटा था।
  • सांगा की मृत्यु के बाद मेवाड़ का राजा बना।
  • बूंदी के सूरजमल के खिलाफ लड़ता हुआ मारा गया था।

महाराणा विक्रमादित्य (1531 – 1536ई.) 

पिता – सांगा, माता – कर्मावती (हाड़ी की रानी (बूंदी))
  • संरक्षिका – कर्मावती      मेवाड़ का इतिहास
  • 1533 ई. में गुजरात के बहादुरशाह ने मेवाड़ पर आक्रमण कर दिया ।
  • कर्मावती ने रणथम्भौर किला देकर संधि कर ली थी।
  • 1534-35 ई. में बहादुरशाह ने मेवाड़ पर पुनः आक्रमण किया ।
  • कर्मावती ने मुगल बादशाह हुमायुं को राखी भेजकर सहायता मांगी | 
  • 1535 में चित्तौड़ का दूसरा साका हुआ।
  • रानी कर्मावती ने जौहर किया तथा देवलिया (प्रतापगढ़) केसरिया किया गया।
  • बाघ सिंह को देवलिया दीवान भी कहां जाता है।
  • बाघसिंह की छतरी पाडुपोल (चित्तौड़गढ़) पर बनी हुई है।
  • 1535 ई. के पुर ताम्रपत्र से कर्मावती के जौहर की जानकारी मिलती है।

बाघ सिंह ने खानवा के युद्ध में भी भाग लिया था।

  • बनवीर को मेवाड़ का प्रशासक बनाया था।
  • बनवीर उड़ना राजकुमार पृथ्वीराज की दासी का बेटा था।
  • वह उदयसिंह को भी मारना चाहता था, लेकिन पन्नाधाय ने अपने बेटे चन्दन का बलिदान देकर उदयसिंह को बचा लिया।
  • बनवीर ने विक्रमादित्य की हत्या कर दी थी ( 1536 ई.) ।
  • कुम्भलगढ़ के आशा देवपुरा ने पन्नाधाय व उदयसिंह को शरण दी ।

महाराणा उदयसिंह (1537 – 72 ई.)

पिता:-  राणा सांगा, माता :-  कर्मावती
मेवाड़ का इतिहास | History of Mewar  | Hindi Mewad ka Itihas Hindi
मेवाड़ का इतिहास | History of Mewar  | Hindi Mewad ka Itihas Hindi 

मावली (उदयपुर) का युद्ध – ( 1540 ई.)
  • इस युद्ध में उदयसिंह ने बनवीर को हराया।    मेवाड़ का इतिहास
  • 1544 ई. में मारवाड़ से लौटते समय शेरशाह सूरी चित्तौड़ की तरफ मुड़ा परन्तु उदयसिंह ने उससे संधि कर ली।

हरमाडा (अजमेर) का युद्ध – 1557 ई.

 उदयसिंह v/s हाजी खाँ पठान (अजमेर)
  • मालदेव (जोधपुर) ने हाजी खाँ पठान का साथ देकर उदयसिंह को हरवाया था ।

मालदेव खैरवा (पाली) के जैतसिंह झाला की राजकुमारी से विवाह करना चाहता था परन्तु जैतसिंह ने उसका विवाह उदयसिंह से कर दिया अतः मालदेव व उदयसिंह में विवाद था।

उदयसिंह ने उस झाली रानी के लिए कुम्भलगढ़ में महल बनवाये जो ‘झाली रानी का मालिया’ नाम से प्रसिद्ध है।

  • 1559 में उदयपुर की स्थापना की तथा यहाँ सर्वप्रथम पानेडा महल बनवाये गये जहाँ कालान्तर में मेवाड़ के शासकों का राजतिलक किया जाता था। पहले उदयसिंह आहड में नया नगर बसाना चाहता था तथा वहाँ पर मोती महल का निर्माण भी कर लिया गया था। परन्तु बाद में एक साधु के कहने पर नये नगर उदयपुर की स्थापना की गई। 
  • उदयसागर झील का निर्माण करवाया गया।
  • 1567-68 ई. में अकबर ने चित्तौड़ पर आक्रमण किया।
  • उदयसिंह गिर्वा की पहाड़ियों (उदयपुर) में चला गया। 
  • चित्तौड़ किले की जिम्मेदारी जयमल पत्ता को दी गई। अकबर की संग्राम नामक बन्दूक की गोली से जयमल घायल हो गया। 
  • जयमल ने कल्ला राठौड़ के कंधों पर बैठकर युद्ध किया था। इसलिए कल्ला राठौड़ को चार हाथों का देवता कहा जाता है।
  • 1568 ई. में चित्तौड़ का तीसरा साका हुआ।
  • फूल कबर के नेतृत्व में जौहर किया गया।
  • अकबर ने 25 फरवरी 1568 को चित्तौड़ पर अधिकार कर लिया तथा उसने चित्तौड़ में 30,000 लोगों का कत्लेआम किया। अकबर ने इसके बाद यहाँ ‘सिक्का एलची’ प्रचलित किया।
  • अकबर जयमल तथा पत्ता की वीरता से प्रभावित हुआ तथा उसने जयमल तथा पत्ता की मूर्तियाँ आगरा के किले में लगवाई।
  • फ्रांसिसी यात्री बर्नियर ने इन मूर्तियों का वर्णन किया है। पुस्तक- Travels in the Mughal Empire
  • बीकानेर के जूनागढ़ किले में भी जयमल तथा पत्ता की मूर्तियाँ है

 जयमल

  • यह मेड़ता का राजा था।
  • 1562 ई. में अकबर ने मेड़ता पर अधिकार कर लिया था।

पत्ता चूंडावत

  • यह आमेट (राजसमंद) का सामंत था ।
  • आमेट मेवाड़ का प्रथम श्रेणी ठिकाना था।

 फूलकंवर

  • जयमल की बहन तथा पत्ता की रानी ।

जयमल तथा कल्ला राठौड़ की छतरियाँ हनुमान पोल व भैरव पोल (चित्तौड़) के मध्य स्थित है तथा पत्ता की छतरी ‘रामपोल’ (चित्तौड़ पर बनी हुई है।

  • 28 फरवरी 1572 ई. को होली के दिन गोगुन्दा (उदयपुर) में उदयसिंह की मृत्यु हुई थी। 
  • उदयसिंह की छतरी गोगुन्दा में बनाई हुई है।   मेवाड़ का इतिहास
  • उदयसिंह ने अपने बड़े बेटे प्रताप को राजा नहीं बनाया बल्कि छोटे बेटे जगमाल को राजा बनाया

महाराणा प्रताप ( 1572–97 ई.)

 पिता :- उदयसिंह, माता :- जयवन्ता बाई सोनगरा ( पाली के अखैराज सोनगरा की पुत्री)
मेवाड़ का इतिहास | History of Mewar  | Hindi Mewad ka Itihas Hindi 
  • जन्म 9 मई 1540 ई. (ज्येष्ठ शुक्ल तृतीया विक्रमी संवत् 1597) –
  • जन्म स्थान – कुम्भलगढ़
  • बचपन का नाम – कीका
  • रानी – अजब दे पंवार 
  • प्रताप का पहला राजतिलक गोगुन्दा में हुआ। सलूम्बर के सामंत कृष्णदास चूण्डावत ने राजतिलक किया था।
  • प्रताप का विधिवत राजतिलक कुम्भलगढ़ में हुआ। इस राजलिक समारोह में मारवाड़ का ‘चंद्रसेन’ भी आया था।
  • अकबर ने प्रताप को समझाने के लिए चार दूत भेते थे।
1. जलाल खाँ कोरची – सितम्बर 1572 ई.
2. मानसिंह जून 1573 ई.
3. भगवन्तदास – सितम्बर 1573 ई.
4. टोडरमल – दिसम्बर 1573 ई. 
मेवाड़ का इतिहास | History of Mewar  | Hindi Mewad ka Itihas Hindi

युद्ध से पूर्व मुगल सेना मोलेला नामक गांव में तथा मेवाड़ की सेना लोसिंग नामक गावं में रूकी थी

  • चेतक के घायल होने के कारण प्रताप युद्ध भूमि से बाहर चला गया।
  • झाला मान (बीदा) ने युद्ध का नेतृत्व किया तथा वीरगति को प्राप्त हुआ ।
  • ‘मिहत्तर खाँ’ नामक सैनिनक ने युद्ध में अकबर के आने की झूठी सूचना दी थी।
  • मानसिंह प्रताप को अकबर की अधीनता स्वीकार करवाने में असफल रहा।
  • अकबर ने मानसिंह तथा आसफ खाँ का दरबार में आना बन्द करवा दिया था ।
  • चेतक की छतरी बलीचा (राजसमंद) में बनी हुई है। 
  • हल्दीघाटी युद्ध में प्रताप की तरफ से लूणा व रामप्रसाद नामक हाथी ने भाग लिया था जबकि मुगलों की सेमरदाना मुक्त नामक हाथी उपस्थित थे। को मुगल सेना ने पकड़ लिया तथा अकबर ने इसका नाम बदलकर पौद कर दिया था।

इतिहासकार हल्दीघाटी युद्ध के नाम
अबुल फजल
खमनौर का युद्ध
बदायूंनी
गोगुन्दा का युद्ध
जेम्स टॉड मेवाड़ की थर्मोपोली
आदर्शी लाल श्रीवास्तव बादशाह बाग का युद्ध

  • बदायूंनी ने हल्दीघाटी के युद्ध में भाग लिया था। पुस्तकः मुन्तखब उत- तवारीख । बदायूँनी ने लिखा है कि प्रताप का पीछा करने का न तो साहस था और न ही शक्ति । उसी के अनुसार मुगलों को भय था कि प्रताप की सेना पहाड़ों में घात लगाये न बैठी हो । अतः प्रताप का पीछा करने के बजाय की ओर प्रस्थान करना श्रेयस्कर माना। जहाँ मुगल सेना को भीलों ने बहुत अधिक परेशान किया, उनकी रसद सामग्री को वे लूट कर ले गये ।

हल्दीघाटी युद्ध का महत्व:

  • यह साम्राज्यवादी शक्ति के खिलाफ प्रादेशिक स्वतंत्रता का संघर्ष था
  • प्रताप ने कम संसाधनों के बावजूद अकबर से संघर्ष किया जिससे मेवाड़ की जनता में आशा व नैतिकता का संचार हुआ।
  • इस युद्ध ने मेवाड़ की सामान्य जनता व जनजातियों में राष्ट्रवादी भावनाओं का संचार किया।
  •  यह युद्ध आज भी राष्ट्रवादियों के लिए प्रेरणा स्त्रोत का कार्य करता है।   मेवाड़ का इतिहास

  • बदायूँनी का उपर्युक्त कथन, मानसिंह की अकबर द्वारा दरबार में उपस्थिति की मनाही, स्वयं अकबर द्वारा मेवाड़ पर आक्रमण के लिए आना तथा घटनाओं का विश्लेषण करने से स्पष्ट है कि हल्दीघाटी के युद्ध में प्रताप का पलड़ा भारी रहा। उसने मुगलों के अजेय होने का भ्रम तोड़ दिया।
  • 1576 ई. में अकबर ने मेवाड़ पर आक्रमण किया तथा उसने उदयपुर का नाम बदलकर मुहम्मदाबाद कर दिया।

कुम्भलगढ़ का युद्ध

  • मुगल सेनापति शाहबाज खान ने कुम्भलगढ़ पर तीन बार आक्रमण किये थे। (1577, 1578, 1579)

शेरपुर (उदयपुर) घटना 1580 ई.

  • अमरसिंह ने अब्दुल रहीम ( मुगल सेनापति) की बेगमों को गिरफ्तार कर लिया था। लेकिन प्रताप ने उन्हें ससम्मान वापस भिजवाया।

दिवेर (राजसमंद) का युद्ध – 1582 ई.

मुगल सेना ने चार स्थानों पर अपने थाने स्थापित किये थे। 1. दिवेर 2. देवल 3. देबारी 4. देसूरी 

  • प्रताप ने मुगल सेना को हरा दिया था।
  • अमरसिंह ने मुगल सेनापति सुल्तान खान को मार दिया था।
  • जेम्स टॉड ने इस युद्ध को मेवाड़ का मैराथन कहा था।
  • प्रतापगढ़, बाँसवाड़ा, तथा ईडर रियासतों ने प्रताप का साथ दिया था।
  • 1585 ई. में जगन्नाथ कछवाहा ने मेवाड़ पर आक्रमण किया। यह अकबर की तरफ से मेवाड़ पर अंतिम आक्रमण था।
  • प्रताप ने आमेर रियासत का मालपुरा (टोंक) छीन लिया था।
  • प्रताप ने मालपुरा में ‘झालरा तालाब’ तथा ‘ नीलकण्ठ महादेव मंदिर का निर्माण करवाया।
  • प्रताप ने चावण्ड (उदयपुर) को अपनी राजधानी बनाया। चावण्ड 28 वर्षों तक मेवाड़ की राजधानी रहा था। प्रताप ने चावंड में चामुंडा माता का मंदिर तथा महलों का निर्माण करवाया था।
  • चावंड से मेवाड़ की स्वतंत्र चित्रकला का स्वतंत्र विकास प्रारम्भ हुआ। मुख्य चित्रकार नासिरूद्दीन –
  • 19 जनवरी 1597 ई. को चावंड में प्रताप की मृत्यु हुई। चित्तौड़गढ़ तथा माण्डलगढ़ को छोड़कर प्रताप ने सम्पूर्ण मेवाड़ पर पुनः अधिकार कर लिया।
  • प्रताप की छतरी – बांडोली (उदयपुर) (8 खंभे )
दरबारी विद्वान
1. चक्रपाणि मिश्र
पुस्तक 1. राज्याभिषेक (राजतिलक की शास्त्रीय पद्धति)
          2. मुहुर्तमाला :- (ज्योतिष शास्त्र)
           3. विश्व वल्लभ:- (उद्यान विज्ञान की जानकारी)
2. हेमरत्न सूरि : गौरा बादल री चौपाई   मेवाड़ का इतिहास
3. सादुलनाथ त्रिवेदी :  प्रताप ने इन्हें मंडेर नामक जागीर दी थी। यह जानकारी 1588 – ई. उदयपुर अभिलेख से मिलती है।
4. भामाशाह:- इन्होंने ‘चूलिया नामक गाँव में प्रताप से अपने भाई ताराचन्द के साथ मुलाकात की तथा प्रताप को 25 लाख रूपये नकद तथा 20 हजार स्वर्ण अशर्फिया भेंट की जिससे प्रताप 25 हजार की सेना को 12 वर्ष तक रख सकते थे। प्रताप ने भामाशाह को प्रधानमंत्री बनाया था। भामाशाह को मेवाड़ का उद्धारक कहा जाता है।

जीवधर की रचना ‘अमरसार के अनुसार प्रताप ने ऐसा सृदृढ शासन स्थापित कर लिया था कि महिलाओं और बच्चों तक को किसी से भय नहीं रहा । आन्तरिक सुरक्षा भी लोगों को इतनी प्राप्त हो गई थी कि बिना अपराध के किसी को कोई दण्ड नहीं दिया जाता था। उसने शिक्षा प्रसार के भी प्रयत्न किए।

प्रताप के संबंध में कर्नल टॉड लिखते हैं कि आलप्स पर्वत के समान अरावली में कोई ऐसी घाटी नहीं, जो प्रताप के किसी न किसी वीर कार्य, उज्ज्वल विजय या उससे अधिक कीर्तियुक्त पराजय से पवित्र न हुई हो। हल्दीघाटी मेवाड़ की थर्मोपल्ली और दिवेर मेवाड़ का ‘मेराथन’ है।

अमरसिंह प्रथम (1597 – 1620 ई.)

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मेवाड़ का इतिहास | History of Mewar  | Hindi Mewad ka Itihas Hindi 
  • मुगल- मेवाड सन्धि :- 5 फरवरी 1615 ई.
  • यह सन्धि मुगल बादशाह जहाँगीर तथा मेवाड़ के शासक अमरसिंह प्रथम के मध्य सम्पन्न हुई।
  • मेवाड़ की तरफ से संधि का प्रस्ताव लेकर हरिदास तथा शुभकरण गये थे।
  • मुगलों की तरफ से खुर्रम (शाहजहाँ) ने संधि की थी ।
संधि की शर्ते
  • मेवाड़ का राणा मुगल दरबार में नहीं जाएगा।
  • मेवाड़ का युवराज मुगल दरबार में जाएगा।
  • मेवाड़ मुगलों को 1000 घुडसवार सैनिकों की सहायता देगा।
  • चित्तौड़ का किला मेवाड़ को वापस दिया जाएगा। लेकिन मेवाड़ इसका पुनर्निर्माण नहीं करना सकता।
  • वैवाहिक सम्बन्ध स्थापित नहीं किये जाएगें।
संधि का महत्व
  • सांगा व प्रताप के समय से चली आ रही स्वतंत्रता की भावना का पतन हुआ।
  • युद्धों के बन्द होने से मेवाड़ में शान्ति व्यवस्था सुनिश्चित हुई। जिससे कलात्मक गतिविधियों को बढ़ावा मिला।
  • युवराज कर्णसिंह जहाँगीर के दरबार में गया था जहांगीर ने कर्णसिंह को 5000 का मनसबदार बनाया।
  • जहांगीर ने कर्णसिंह और अमरसिंह की मूर्तियाँ आगरा के किले में लगवाई थी।
  • अंग्रेजी राजदूत सर टॉमस रो के अनुसार ‘बादशाह ने मेवाड़ के राणा को आपस के समझौते से अधीन किया था न कि बल से । उसने उसको एक प्रकार के बख्शिशों से ही अधीन किया न कि जीत कर उसको अधीन करने से बादशाह की आय में कोई वृद्धि न हुई, किन्तु उसको उल्टा बहुत | कुछ देना पड़ा था। (विलियम फॉस्टर द्वारा सम्पादित पुस्तक ‘दी एम्बेसी ऑफ सर टॉमस रो से )
  • अमरसिंह इस संधि से निराश था तथा वह नौ चौकी (राजसमंद) चला गया था।
  • कालान्तर में यहाँ पर राजसमंद झील का निर्माण करवाया था।
ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती की दरगाह में 1637 ई. का शाहजहाँनी मस्जिद के अभिलेख से यह ज्ञात होता है कि शहजादा खुर्रम ने मेवाड़ के साथ संधि के बाद यह मस्जिद बनवाई थी।

  • आहड (उदयपुर) में अमरसिंह की छतरी बनी हुई है। अमरसिंह के बाद मेवाड़ के सभी महाराणाओं की छतरियाँ आहड़ में ही स्थित है एवं यह स्थान महासतियाँ कहलाता है।

कर्णसिंह (1620-28 ई.)

  • उदयपुर में कर्ण विलास तथा दिलखुश महलों का निर्माण करवाया।
  • “जगमन्दिर महल का निर्माण शुरू करवाया। (पिछोला झील में) मेवाड़ का इतिहास
  • अपने विद्रोह के दौरान खुर्रम जगमन्दिर महलों में रूका था।

जगत सिंह प्रथम (1628-52 ई.)

  • जगमन्दिर महल का निर्माण पूरा करवाया।
  • उदयपुर में जगदीश (जगन्नाथ मंदिर) का निर्माण करवाया। इसे सपने में बना मंदिर कहा जाता है।
  • यह मन्दिर पंचायतन शैली में बना हुआ है। जिसके वास्तुकार अर्जुन भाणा, मुकन्द थे यहाँ पर कृष्ण
  • भट्ट द्वारा रचित जगन्नाथ राय प्रशस्ति से ‘हल्दीघाटी युद्ध’ की जानकारी मिलती है।
  • इसकी धाय माँ नौजूबाई ने उदयपुर में विष्णु मन्दिर का निर्माण करवाया। जिसे नौजू बाई का मन्दिर भी कहा जाता है।
  • जगतसिंह अपनी दानवीरता के लिये प्रसिद्ध था ।

राज सिंह (1652–1680ई.)

  • चित्तौड़ किले का पुनर्निर्माण शुरू करवाया तथा शाहजहाँ के खिलाफ आक्रामक नीति अपनाई। इस समय शाहजहाँ ने सादुल्ला खाँ को भेजकर इस पुनर्निर्माण को रूकवाया।
  • उत्तराधिकार संघर्ष में राज सिंह ने औरंगजेब का साथ दिया था। इस समय राजासिंह ने टीका दौड़ का आयोजन करवाया तथा कई मुगल क्षेत्रों पर अधिकार कर लिया। औरंगजेब के जजिया कर का विरोध किया था।
  • औरंगजेब के खिलाफ जोधपुर के अजीतसिंह की सहायता की। इसे राठौड सिसोदिया गठबंधन’ कहा जाता है।
  • औरंगजेब के खिलाफ हिन्दु देवी-देवताओं की मूर्तियों की रक्षा की।
  • औरंगजेब के खिलाफ हिन्दु राजकुमारियों की रक्षा की। जैसे रूपनगढ़ (अजमेर) की राजकुमारी चारूमती से 1669 ई. में औरंगजेब की इच्छा के खिलाफ विवाह किया था।
    सहल कंवर

  • यह सलूम्बर के सामन्त रतन सिंह चूण्डावत की हाडी नारी थी।
  • अपने पति के निशानी मांगने पर अपना सर काटकर दे दिया था।
  • यह घटना राज सिंह चारुमती के विवाह के समय हुई थी।  मेवाड़ का इतिहास
  • मेघराज मुकुल की कविता – सैनाणी (निशानी)

सांस्कृतिक उपलब्धियाँ
मन्दिर-
1. श्री नाथ मंदिर सिहाङ (नाथद्वारा) (राजसमन्द) – श्री नाथ जी की मूर्ति गोविन्ददास तथा दामोदर मथुरा से लेकर आये थे (1672 ई.)
2. द्वारिकाधीश मंदिर कांकरोली ( राजसंमद)
3. अम्बा माता मंदिर- उदयपुर
झीलें :-
1. त्रिमुखी बावड़ी (उदयपुर)- इस झील का निर्माण राज सिंह की रानी रामरसदे ने करवाया था । इसे जया बावड़ी भी कहा जाता है।
2 जानासागर तालाब (उदयपुर)- इसका निर्माण राज सिंह की माता जानादे राठौड़ ने करवाया था। जानासागर प्रशस्ति का प्रशस्तिकर कृष्ण भट्ट का पुत्र लक्ष्मीनाथ तथा लेखक उसका भाई भास्कर भट्ट था ।
3 राजसमंद झील (राजसमंद)
दरबारी विद्वान:- 
(पुस्तक)
1. किशोरदास  :- राजप्रकाश
2. सदाशिव भट्ट :- राज रत्नाकर
3. रणछौड़ भट्ट तैलंग- 1.राज प्रशस्ति  2.अमर काव्य वंशावली
4. कवि मान:- राज विलास
5. गिरधर दास:- सगत रासी (प्रताप के छोटे भाई शक्तिसिंह की जानकारी )
6. कल्याण दास:- गुण गोविन्द
    राज प्रशस्ति
  • यह राजसमन्द झील के पास नौचौकी नामक स्थान पर स्थित है।
  • 1662 से 1676 ई. तक राजसमंद झील का निर्माण अकाल राहत कार्यों के तहत किया गया था।
  • यह संस्कृत भाषा का सबसे बड़ा अभिलेख है। यह 25 पत्थरों पर लिखी गई है।
  •  इस प्रशस्ति से बापा रावल से राजसिंह तक मेवाड़ के राजाओं की वंशावली, मुगल मेवाड़ संधि, प्रताप के भाई शक्ति सिंह की जानकारी मिलती है। इस प्रशस्ति से “पृथ्वीराज रासो तथा गुरुकुल प्रणाली की जानकारी मिलती है।

    अमर काव्य वंशावली
  • इस पुस्तक में अमर सिंह द्वितीय की जानकारी है।
  • यह प्रताप के छोटे भाई शान्ति सिंह तथा प्रताप के घोड़े चेतक की जानकारी भी देती है।

राजसिंह की उपाधियाँ
  • विजयकटकातु (सेनाओं को जीतने वाला)
  • हाइडोलिक रूलर

जयसिंह (1680–98 ई.)

  • औरंगजेब से संधि कर राठौड़-सिसोदिया गठबन्धन से अलग हो गया।
  • जजिया के बदले पुर मांडल व बदनौर के परगने बादशाह को दे दिये गये । हाँलाकि कालान्तर में ये परगने पुनः मेवाड़ को मिल गए।
  • 1687 ई. में उदयपुर में जयसमंद झील का निर्माण शुरू करवाया जो 1691 ई. में पूर्ण हुआ। इसके लिए गोमती, झामरी, रूपारेल व बगार नदी का जल रोककर बाँध बनाया गया। इससे ढेबर झील भी कहा जाता है। इसके समीप ‘नर्मदेश्वर शिवालय स्थित है। जयसिंह ने यहाँ अपनी परमार रानी कोमला देवी के लिये महलों का निर्माण करवाया था, जिन्हें रूठी रानी का महल भी कहा जाता
इस झील में बाबा का मगरा तथा पाइरी’ नामक कई टापू स्थित है। 


अमर सिंह द्वितीय (1698 1710ई.)

  • मेवाड़ में अमरशाही पगड़ी का प्रचलन आरम्भ किया।

देबारी (उदयपुर) समझौता – 1708

अमरसिंह द्वितीय (मेवाड) + अजीत सिंह (मारवाड जोधपुर ) + सवाई जयसिंह (आमेर)
  • यह समझौता मुगल बादशाह बहादुर शाह प्रथम के खिलाफ किया गया था।   मेवाड़ का इतिहास
समझौते की शर्तें
  • अजीतसिंह तथा सवाई जयसिंह को उनके राज्य दिलवाने में मदद की जाएगी। 
  • अमरसिंह द्वितीय की बेटी चंद्र कंवर की शादी सवाई जयसिंह से की जाएगी। तथा चन्द्रकंवर का बेटा आमेर का अगला राजा होगा।

संग्राम सिंह द्वितीय (1710–34)

  • मराठों ने मेवाड़ से चौथ प्राप्त किया। (राजस्थान में पहली बार )
  • उदयपुर में सहेलियों की बाडी का निर्माण करवाया गया।
  • सीसारमा (उदयपुर) में वैद्यनाथ (शिवजी) मंदिर का निर्माण करवाया। इसका निर्माण अपनी माता देव कुंवरी हेतु करवाया था। (1716 ई.)
  • वैद्यनाथ प्रशस्ति का लेखक रूप भट्ट है। इस प्रशस्ति से बांदनवाडा युद्ध (अजमेर) की जानकारी मिलती है। इस युद्ध में संग्राम सिंह द्वितीय ने मुगल सेनापति राज खान को हरा दिया था। यह युद्ध पुर मांडल बदनौर परगनों के कारण हुआ था।

जगतसिंह द्वितीय (1734–51)

हुरडा सम्मेलन (भीलवाडा) – 17 जुलाई 1734 ई.
  • यह राजस्थान के राजपूत राजाओं का मराठों के खिलाफ सम्मेलन था । मेवाड़ का इतिहास
मेवाड – जगत सिंह द्वितीय (अध्यक्ष)
जयपुर – सवाई जयसिंह
मारवाड :- अभय सिंह
नागौर – बख्तसिंह
बीकानेर – जोरावर सिंह
बून्दी – दलेल सिंह
कोटा – दुर्जन साल
किशनगढ – राजसिंह
करौली – गोपालपाल
सम्मेलन के निर्णय
  • सभी राजा मराठों के खिलाफ एक दूसरे की सहायता करेंगे।
  • वर्षाऋतु समाप्त होने के बाद रामपुरा (कोटा) में मराठों के खिलाफ युद्ध किया जायेगा । 
सम्मेलन का महत्व
  • खानवा युद्ध के बाद राजस्थान के राजपूत राजाओं में किसी अन्य शान्ति के  खिलाफ एकता बनाने की कोशिश की ।
  • राजाओं के आपाती मतभेदों के कारण हुरड़ा सम्मेलन असफल हो गया था ।
  • उदयपुर में जगतनिवास महल का निर्माण करवाया। दरबारी विद्वान नेकराम ने जगत विलास नामक पुस्तक लिखी। जिसमें इस महल की प्रतिष्ठा का सविस्तार वर्णन है।

राणा भीमसिंह (1784-1824 ई.)

  • राणा भीमसिंह ने अपनी पुत्री कृष्णकुमारी का विवाह मारवाड़ के शासक भीमसिंह के साथ तय किया। दुर्भाग्यवश शादी से पहले ही मारवाड के भीमसिंह की मृत्यु हो गयी। भीमसिंह की मृत्यु उपरांत कृष्णाकुमारी का विवाह आमेर के जगतसिंह द्वितीय के साथ तय किया गया। मारवाड़ के नये शासक मानसिंह ने भीमसिंह के भ्राता होने के कारण इस संबंध का विरोध किया।
  • इस घटना के कारण आमेर एवं मारवाड़ रियासत परस्पर विरोधी हो गयी एवं 1807 ई. में जगतसिंह द्वितीय एवं मानसिंह के मध्य गिंगोली का युद्ध (परबतसर का युद्ध) हुआ। ard
  • लम्बे समय तक चले इस युद्ध में दोनों ही पक्षों में भयंकर खून-खराबा हुआ।
गिंगोली ( परबतसर) का युद्ध (नागौर)-1807
जगत सिंह द्वितीय ( जयपुर ) V/S मानसिंह (जोधपुर)
अमीर खाँ पिंडारी (टोंक) तथा अजीत सिंह (चुण्डावत (सलूम्बर) के कहने पर कृष्णाकुमारी को जहर देकर इस विवाद का अन्त किया गया। (21 जुलाई 1810 ई.) 
13 जनवरी 1818 ई. में भीमसिंह अंग्रेजों के साथ संधि कर लेता है। इस सन्धि में अंग्रेजों का प्रतिनिधि चार्ल्स मेटकॉफ तथा मेवाड का प्रतिनिधि  अजीत सिंह था। कर्नल जेम्स टॉड को मेवाड का प्रथम पॉलिटिकल एजेन्ट
बनाया गया था।  
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