सिरोही का इतिहास काफी प्राचीन है यहा पर चौहान वंश की देवड़ा शाखा ने शासन किया, सिरोही सिरणवा नामक पहाड़ी के नीचे स्थित है ऐसा माना जाता है की सिरणवा पहाड़ी के तल मे स्थित होने के कारण इसका नाम सिरोही पड़ा । सिरोही के देवड़ा शासक राव शोभा ने शिवपुरी नामक नगर की स्थापना की , राव शोभा के पुत्र शहस्त्रमल ने 1425 मे वर्तमान सिरोही शहर की स्थापना की। यह भी पढे: जयपुर का इतिहास

सिरोही का इतिहास: संक्षिप्त विवरण
विवरण | सिरोही का इतिहास |
संस्थापक | शहस्त्रमल |
स्थापना वर्ष | 1425 ई. |
राजवंश | चौहान (देवड़ा शाखा) |
प्राचीन नाम | देवनागरी और अर्बुददेश |
मूल नाम | शिवपुरी |
क्षेत्रफल | 5136 वर्ग किमी. |
सिरोही का इतिहास महत्वपूर्ण जानकारी
कर्नल टॉड के अनुसार सिरोही नगर का मूलनाम शिवपुरी था। सिरोही राजस्थान के दक्षिण पश्चिमी हिस्से में स्थित भू-भाग है। इसका प्राचीन नाम अर्बुददेश ( अर्बुदांचल) अर्थात् आबू का मुल्क था। सिरोही शब्द की उत्पत्ति ‘सिरणवा’ से मानी जाती है। ‘सिरणवा’ नामक पर्वत श्रेणी के नीचे इस शहर के बसने के कारण इसका नाम सिरोही पड़ा। प्राचीनकाल में सिरोही क्षेत्र ‘देवनागरी’ के नाम से भी जाना जाता था। माउण्ट आबू में ब्रिटिश शासन काल में 1857 ई. में ब्रिटिश शासन के दौरान ‘एजेन्ट टू गवर्नर जनरल’ (AGG) का कार्यालय स्थापित किया गया था। सिरोही का इतिहास
वर्तमान सिरोही की स्थापना
देवड़ा चौहान राजा रणमल के पुत्र महाराव शिवभाण (लोकप्रिय नाम शोभा) ने ‘सिरणवा’ नामक पहाड़ी के नीचे 1405 में एक शहर बसाया और उक्त पहाड़ी के ऊपर एक किला बनवाया। यह शहर महाराव शिवभाण के नाम से शिवपुरी कहलाया। यह अब खंडहर हो चुका है। इसे पुरानी सिरोही कहते हैं। महाराव शिवभाण के बाद उनके पुत्र सहस्रमल (सैंसमल) ने 1425 ई. में वैशाख सुदी दूज को वर्तमान सिरोही नगर बसाया। इन्होंने चंद्रावती के स्थान पर सिरोही को नई राजधानी बनाया। सिरोही का इतिहास
सिरोही के इतिहास मे आबू पर्वत की भूमिका
सिरोही जिले का सबसे ऊँचा पर्वत ‘आबू पर्वत’ (Mount Abu) है। इसका सबसे ऊँचा शिखर ‘गुरुशिखर’ है। हिमालय और नीलगिरी पर्वतमाला के बीच के प्रदेश में इतनी ऊँचाई का दूसरा कोई पहाड़ी शिखर नहीं है। आबू के पश्चिम में नांदवणा नाम की पहाड़ियाँ हैं, जो नींबज की पहाड़ियाँ भी कहलाती हैं। राजस्थान का सबसे उच्चा पठार आबू पर्वत की तलहटी मे स्थित उडिया पठार है। आबू पर्वत पर परमार राजवंश का शासन रहा किन्तु वर्तमान मे यह सिरोही जिले मे आता है। माउंट आबू पर्यटन की दृष्टि से काफी महत्वपूर्ण जगह है माउंट आबू को राजस्थान का शिमला भी कहा जाता है । सिरोही का इतिहास
सिरोही का इतिहास: महत्वपूर्ण तथ्य
- प्रसिद्ध साहित्यकार गौरीशंकर हीराचंद ओझा का जन्म सिरोही जिले के रोहिड़ा नामक गाँव में हुआ था।
- आबू क्षेत्र में गरासियों द्वारा होली के अवसर पर जवारा नृत्य किया जाता है। इसके अलावा यहाँ का मोरिया, मांदल व वालर नृत्य भी प्रसिद्ध है।
- सिरोही रियासत अंग्रेजों से संधि करने वाली अंतिम रियासत थी। इसने 1823 ई. में अंग्रेजों से संधि की थी।
- गुरु गोविंद गिरि ने सिरोही में सम्पसभा की स्थापना की थी।
- 1949 में तत्कालीन सिरोही रियासत का राजस्थान में विलय किया गया।
- राज्यों के पुनर्गठन के समय 1956 में आबूरोड तहसील बम्बई राज्य से सिरोही जिले में स्थानांतरित की गई। तब से यह जोधपुर संभाग का एक जिला है।
- सिरोही की तलवारें प्रसिद्ध हैं।
- ‘राजस्थान के गाँधी’ के नाम से विख्यात श्री गोकुल भाई भट्ट की जन्म स्थली हाथल, सिरोही जिले में ही है।
- सिरोही के महाराव अखैराज ‘उडणा अखैराज‘ के नाम से प्रसिद्ध हैं। सिरोही का इतिहास
सिरोही मे स्थित दिलवाड़ा के जैन मंदिर
ये 11वीं से 13वीं सदी के सोलंकी कला के अद्भुत उदाहरण हैं। डाक विभाग ने 14 अक्टूबर, 2009 को दिलवाड़ा जैन मंदिर पर डाक टिकट जारी किया है। ये मंदिर नागर शैली व मारू गुर्जर स्थापत्य शैली में बने हैं। कर्नल जेम्स टॉड के अनुसार ‘देलवाड़ा के जैन मंदिर ताजमहल के बाद देश की सबसे सुंदर इमारत है। आबू पर्वत पर दिलवाड़ा में मंदिर परिसर में पाँच श्वेताम्बर मंदिर हैं इनके अलावा दिलवाड़ा में एक दिगम्बर जैन मंदिर भी है। ये निम्न हैं
1. विमलक्सहि का जैन मंदिर: दिलवाड़ा परिसर का यह भव्यतम मंदिर है जिसका निर्माण गुजरात के सोलंकी महाराजा भीमदेव के मंत्री एवं सेनापति विमल शाह ने महान शिल्पकार कीर्तिधर के निर्देशन में 1031 ई. में करवाया था। 14 वर्षों में इस मंदिर को मूर्तरूप दिया गया। यह मंदिर जैन धर्म के प्रथम तीर्थंकर भगवान ऋषभदेव (आदिनाथ) का है। यह देलवाड़ा का प्राथमिक मंदिर है। उस समय आबू पर परमार राजा धंधुक राज्य करता था। इस मंदिर में हस्तीशाला का निर्माण विमलशाह के वंशज पृथ्वीपाल ने 1147-49 ई. के मध्य कराया था। सिरोही का इतिहास

2. लूणवसहि मंदिर : इसका निर्माण सोलंकी (बल) राजा पीर धवल के महामंत्री वस्तुपाल व तेजपाल द्वारा 1230-311 करवाया गया था। इस मंदिर का मुख्य शिल्पी शोभन देव था। इस मंदिर में 22 वें जैन तीर्थकर ‘भगवान नेमिनाथ’ की करुणा विली श्यामवाणी प्रतिमा की प्रतिष्ठा है। देवालय में देरानी जेठानी के गोखड़े निर्मित हैं। ये दोनों गोखड़े वास्तुपाल ने अपनी दूसरी सुहादेवी के श्रेय के निमित्त बनवाए थे। सहि मंदिर वस्तुपाल व तेजपाल ने अपने स्वर्गीय भाई लूंबा की याद में बनवाया था। इसे लोग वस्तुपाल-तेजपाल का मंदिर कहते हैं।

3. खारातारा वसहि पार्श्वनाथ जैन मंदिर: यह मंदिर 15वीं सदी में मंडलीक सांघवी ने 1458-59 ई. में बनवाया था। यह तीन मंजिला है। भगवान पार्श्वनाथ की चौमुखा प्रतिमा के कारण इसे चौमुखा पार्श्वनाथ मंदिर व सिलावटों का मंदिर भी कहते हैं। इसमें सामने की भगवान पार्श्वनाथ की प्रतिमा ‘चिंतामणि पार्श्वनाथ’ की दूसरी ‘मंगलकारी पार्श्वनाथ’ की तीसरी ‘मनोरथ कल्पद्रुम पार्श्वनाथ’ की है। चतुर्थ प्रतिमा अस्पष्ट है। मंदिर की दूसरी मंजिल पर भगवान पार्श्वनाथ, सुमतिनाथ आदिनाथ एवं पाश्र्श्वनाथ की चौमुखी प्रतिमा विराजमान है।

4. हस्तीशाला के पास महावीर स्वामी का एक लघु मंदिर है जिसकी दीवारों व गुम्बद में प्राचीन चित्रकारी विद्यमान है।
5. पित्तलहर या भीमाशाह का मंदिर: दिलवाड़ा का यह मंदिर भीमाशाह ने बनवाया था। जैन तीर्थंकर आदिनाथ की 108 मन की पीतल प्रतिमा (पंच धातु की प्रतिमा) के कारण इस मंदिर को पित्तलहर भी कहते हैं। यह मूर्ति 1469 ई. में गुर्जर श्रीमाल जाति के मंत्री मंडन के पुत्र मंत्री सुंदर व गंदा ने वहाँ पर स्थापित की थी।

6.भगवान कुंथुनाथ: यह मंदिर लूणवसही मंदिर के बाहर दायीं ओर स्थित है। सन् 1449 में महाराणा कुंभा ने इसको बनवाया था। यह मंदिर दिगम्बर जैन मंदिर है जबकि देलवाड़ा के अन्य जैन मंदिर श्वेताम्बर सम्प्रदाय के है।
सिरोही का इतिहासः अन्य पर्यटन स्थल
1. ऋषिकेश मंदिर : आबू रेलवे स्टेशन से कुछ दूरी पर उमरणी गाँव में भगवान ऋषिकेश (विष्णु) का 7 हजार वर्ष पुराना मंदिर है। इस मंदिर का प्रथम वैदिककालीन ग्रंथ स्कन्द पुराण में मिलता है। इसे राजा अमरीश ने बनवाया था व 14 वर्ष तक यहाँ खड़े रहकर तपस्या की थी। इसके बाद यहाँ अमरावती संस्कृति का उद्भव हुआ। यहाँ प्रतिवर्ष भाद्रपद शुक्ला एकादशी को मेला भरता है। सिरोही का इतिहास

2. गौतम ऋषि महादेवका मंदिर(भूरिया बाबा) : यह मंदिर चौटीला ग्राम के पास सूकड़ी नदी के किनारे स्थित है। भूरिया बाबा मीणा समाज के आराध्य देव है। मीणा लोग भूरिया बाबा के नाम की शपथ लेकर कभी झूठ नहीं बोलते व गलत कार्य नहीं करते। मंदिर के पास पवित्र गंगा कुण्ड स्थित हैं जहाँ मीणा समुदाय के लोग अपने पूर्वजों की अस्थियों का विसर्जन करते हैं ताकि उनकी आत्मा को मुक्ति मिल सके। यहाँ भरने वाले वार्षिक मेले को सम्पूर्ण व्यवस्था समाज के पंच लोग करते हैं तथा पुलिस का प्रवेश वर्जित है।

3. भद्रकाली माता मंदिर: ऋषिकेश मंदिर के रास्ते में यह प्राचीन मंदिर स्थित है।

4. सारणेश्वर महादेव: सिरोही में सिरणवा पहाड़ियों में दूधिया तालाब के पास भगवान शिव का 15वीं शताब्दी का ‘सारणेश्वर महादेव मंदिर’ राजकुल के कुलदेवता का मंदिर है।

5. ‘रसिया बालम या कुंवारी कन्या का मंदिर: विश्व प्रसिद्ध देलवाड़ा जैन मंदिर के पीछे पर्वत की तलहटी में यह मंदिर स्थित है। इस मंदिर में दो पाषाण मूर्तियाँ स्थापित हैं। एक मूर्ति युवक की है जो हाथ में विष का प्याला लिए है। इसके सामने नजदीक हो दूसरी मूर्ति युवती को है। ये युवक-युवती अपने प्रेम संबंधों के कारण ‘रसिया’ और ‘बालम’ नाम से जाने जाते हैं।

6. बाजना गणेश : यह मंदिर सिरोही में एक झरने के पास स्थित है। झरने को आवाज के कारण इसे ‘बाजना गणेश’ कहा जाता है।
7. नन्दीवर्धन : इस गाँव में भगवान महावीर के बड़े भाई नन्दीवर्धन द्वारा महावीर के जीवनकाल में बनवाया गया मंदिर स्थित है। इस मंदिर की प्रतिमा के बारे में कहा जाता है कि यह हर प्रहर भाव भंगिमा बदलती है। महावीर स्वामी के जीवन काल में ही यहाँ पर उनके मंदिर का निर्माण होने से इसे जीवन्त स्वामी का तीर्थ भी कहते हैं।
8. अजारी: सिरोही में अजारी गाँव में मारकण्डेश्वर शिवालय स्थित है। ऋषि मार्कण्डेय ने यहाँ तपस्या की थी। उनके नाम पर यह शिवालय (मारकण्डेश्वर) मार्कण्डेश्वर कहलाता है। प्रतिवर्ष भाद्रपद सुदी एकादशी को एवं वैशाखी पूर्णिमा को यहाँ मेले भरते हैं जिनमें गरासिया व अन्य जातियों के आदिवासी बड़ी संख्या में भाग लेते हैं। पास में स्थित ‘गया कुण्ड’ स्थित है। यहाँ लोग अपने मृत परिवारजनों की अस्थियां विसर्जित करते हैं।
9. मीरपुर के जैन मंदिर : सिरका की पहाड़ियों में मीरपुर के कलात्मक जैन मंदिर बने हुए हैं।
सिरोही का इतिहासः अन्य दर्शनीय स्थल
- अंबाजी तीर्थ स्थल : यहाँ अंबाजी का मंदिर, सरस्वती नदी और कोटेश्वर महादेव आदि दर्शनीय स्थल है।
- बामनवाड़ मंदिर: 24वें तीर्थंकर भगवान महावीर को समर्पित यह मंदिर उनके बड़े भाई नंदिवर्धन द्वारा बनाया गया माना जाता है। यहाँ भगवान महावीर ने चातुर्मास किया था।
- भैरु तारक धामः सिरोही में नन्दगिरी की घाटी (अनादरा के पास) में स्थित यह मंदिर भगवान पार्श्वनाथ के गणचिह्न सर्प के सहस्र फणों को समर्पित है।
- महाराव मानसिंह की 1571 ई. में मृत्यु हुई। इनका दाह संस्कार अचलेश्वर मंदिर के सामने हुआ। यहाँ पर इनकी माता धारबाई ने मानेश्वर का मंदिर बनवाया। इनकी माता धारबाई ने सिरोही के पास धारावती नामक बावड़ी बनवाई।
- महाराव बैरिसाल की छतरी : सिरोही में सारणेश्वर मंदिर के नजदीक स्थित दूधिया तालाब के किनारे महाराव बैरिसाल की अत्यंत भव्य छतरी स्थित है। इस तालाब के किनारे सिरोही के राजाओं तथा राजपरिवार के सदस्यों की छतरियाँ बनी हुई है।
- कोलरगढ़ : यह चंद्रावती के परमार शासकों का प्राचीन दुर्ग है, जो अंबाजी मंदिर से 2 किमी. दूरी पर स्थित है।
- लाखेराव झील : इस तालाब का निर्माण महाराव लाखा ने करवाया था। इसे गुलाब सागर भी कहते हैं।
- रतन बाव : सारणेश्वर द्वार के बाहर स्थित रतन बाव को महाराव अखैराज द्वितीय की पटरानी रतन कँवर ने बनवाया था।
- चम्पाबाव : चम्पाबाव महाराव सुरतान की रानी चम्पांकवर ने बनवाई थी। धारावती बाव : महाराव दूदा की रानी धारा बाई ने बनवाई थी।
- लाहिणी बावड़ी : बसंतगढ़ में स्थित लाहिणी बावड़ी का निर्माण परमारों की रानी लाहिणी ने करवाया था।
सिरोही का इतिहासः प्रमुख मेले
मेला | स्थान |
सारणेश्वर जी | सिरोही |
गौतम ऋषि का मेला | चौटीला |
गोर मेला | सियावा |
नक्की झील का मेला | माउन्ट आबू |
मातरा माता मेला | अजारी गाँव |
सिरोही का इतिहास काफी प्राचीन है यहा पर देवड़ा शाखा के राजाओ ने लंबे समय तक शासन किया साथ ही मेवाड़ के कुंभा ने सिरोही मे किले का निर्माण करवाया, सिरोही के इतिहास मे कई वीर योद्धाओ ने जन्म लिया, सिरोही मे 5 तहसील है, आबूरोड, शिवगंज, पिंडवाड़ा, रेवडर और सिरोही। सिरोही की सीमा गुजरात राज्य से मिलने के कारण यह की स्थानीय भाषा पर गुजराती भाषा का प्रभाव दिखाई पड़ता है। सिरोही अपनी सीमा जालोर , पाली तथा उदयपुर के साथ साझा करता है। सिरोही मे से प. बनास नदी निकलती है जिस पर गुजरात का डीसा शहर बसा हुआ है ।
निष्कर्ष:
आज की इस पोस्ट के माध्यम से हमारी टीम ने सिरोही का इतिहास विषय का वर्णन किया है, सिरोही का इतिहास टॉपिक गहनता से लिखा गया है एसके बावजूद भी यदि किसी पाठक को कोई त्रुटि दिखाई देती है तो आप अपना सुझाव कमेन्ट सेक्शन मे कमेन्ट करे।