बीकानेर का इतिहासः बीकानेर का नाम आते ही हमे मरुस्थली भाग याद आता है, बीकानेर को प्राचीन समय मे जांगल प्रदेश के नाम से जाना जाता था, बीकानेर पर जोधपुर के राठोड़ वंश का शासन रहा है, बीकानेर की स्थापना जोधपुर की स्थापना करने वाले राव जोधा के सुपुत्र राव बिकाजी द्वारा बीकानेर की स्थापना स्थापना की यह स्थापना 1465 ई. मे की गई और 1488. को बीकानेर शहर को बीकानेर रियासत की राजधानी बनाया गया। बीकानेर के देशनोक मे करनी माता का मंदिर है, जो राठौड़ वंश की आराध्य देव है। बीकानेर का इतिहास

बीकानेर का इतिहास : स्थापना,संस्थापक और प्रसिद्धि।
बीकानेर का नाम आते ही मुँह में रसगुल्लों की मिठास एवं भुजिया-पापड़ का नमकीन स्वाद स्वतः ही आ जाता है। प्राचीन समय में बीकानेर रियासत जांगल प्रदेश के नाम से जानी जाती थी। कुछ लोग इसे राती घाटी भी कहते हैं। जोधपुर नरेश राव जोधा के पुत्र राव बीकाजी ने सन् 1465 में इस जांगल प्रदेश के अनेक छोटे-छोटे क्षेत्रों एवं कबीलों को करणी माता के आशीर्वाद से विजित कर इस क्षेत्र में राठौड़ राजवंश के शासन की शुरुआत की एवं बीकानेर रियासत की स्थापना की थी। उन्होंने 1488 ई. में बीकानेर शहर को बसाकर उसे अपनी राजधानी बनाया। राव बीका का प्राचीन किला बीकानेर नगर की शहरपनाह के भीतर दक्षिण पश्चिम में एक ऊँची चट्टान पर विद्यमान है। इसके पास ही बाहर की तरफ राव बीका, नरा और लूणकरण की स्मारक छतरियाँ बनी हुई है। बीकानेर रियासत स्वतंत्रता से पूर्व राज्य की चार प्रमुख रियासतों में से एक रियासत थी। स्वतंत्रता के उपरांत 30 मार्च, 1949 को यह राजस्थान में विलीन हो गई। बीकानेर का इतिहास
बीकानेर का इतिहास : विशेष जानकारी
बीकानेर उस्ताकला एवं मथैरण कला के लिए संपूर्ण विश्व में प्रसिद्ध है। यह क्षेत्र जसनाथी सिद्धों का अग्नि नृत्य, बीकानेर की रम्मतें, यहाँ की पाटा संस्कृति (लकड़ी के बड़े-बड़े पाटों पर बैठकर की जाने वाली राजनीतिक एवं सामाजिक चर्चाएँ) आदि के लिए अपना विशेष स्थान रखता है। राजस्थान की पहली महत्त्वपूर्ण नहर गंगनहर का निर्माण भी बीकानेर रियासत के शासक महाराजा गंगासिंह ने सन् 1927 में पूर्ण करवाया एवं हनुमानगढ़-श्रीगंगानगर क्षेत्र की मरुभूमि को हरा-भरा बना दिया। वर्तमान में इंदिरा गाँधी नहर ने बीकानेर जिले के एक बड़े भाग को भी हरा-भरा बना दिया है। बीकानेर एशिया की सबसे बड़ी ऊन की मंडी है। बीकानेर को ‘ऊन का घर’ कहा जाता है। बीकानेर का इतिहास
रियासत | बीकानेर |
स्थापना | 1465 ई. |
संस्थापक | राव बिकाजी |
क्षेत्रफल | 27244 वर्ग किमी. |
अन्य नाम | जांगल प्रदेश/ राटी- घाटी |
शासक वंश | राठौड़ वंश |
नक्शा | क्लिक |
बीकानेर का इतिहास : महत्वपूर्ण तथ्य
- क्षेत्रफल : 27244 वर्ग किमी.
- उत्तर में बीकानेर जिला गंगानगर व हनुमानगढ़ से, पूर्व में चुरु जिले से, दक्षिण पूर्व में नागौर दक्षिण में जोधपुर, दक्षिण पश्चिम में जैसलमेर जिले तथा पश्चिम में पाकिस्तान के साथ अंतरराष्ट्रीय सीमा रेखा पर स्थित है।
- पाकिस्तान के साथ सबसे कम अंतरराष्ट्रीय सीमा बीकानेर जिले की है।
- बीकानेर का उत्तरी पश्चिमी भाग रेगिस्तानी तथा दक्षिणी-पूर्वी भाग अर्द्ध रेगिस्तानी है।
- बीकानेर जिले में कोई नदी नहीं है।
- यहाँ की भुजिया, पापड़, नमकीन व रसगुल्ले प्रसिद्ध है। बीकानेरी भुजिया को अब भौगोलिक चिहनीकरण में शामिल किया गया है। बीकानेर का इतिहास
बीकानेर का इतिहास :Pdf महत्वपूर्ण जानकारी
- बीकानेर में चार विश्वविद्यालय-स्वामी केशवानंद राजस्थान कृषि विश्वविद्यालय, महाराजा गंगासिंह विश्वविद्यालय, राजस्थान पशु चिकित्सा व विज्ञान विश्वविद्यालय एवं बीकानेर तकनीकी विश्वविद्यालय स्थित हैं।
- कोड़मदेसर : यह गाँव राव बीका के प्राचीन निवास के लिए जाना जाता है। यहाँ कोडमदेसर तालाब है। यहाँ तालाब के किनारे महल के खंडहर व भैंस जी की प्रतिमा स्थापित है। यह कोडमदेसर के भैरवजी के धाम के नाम से अधिक प्रसिद्ध है। यहाँ प्रतिवर्ष भाद्रपद शुक्ला बारस को मेला भरता है। इस प्रतिमा को बीका मण्डोर से लेकर आए थे। राव रणमल के पुत्र राव जोधा ने इस तालाब का 1459 में निर्माण कराया था और अपनी माता कोड़मदे के निमित्त यहाँ कीर्ति स्तम्भ स्थापित करवाया था। बीकानेर का इतिहास
- बीकानेर में जोड़बीड़ में राष्ट्रीय ऊँट अनुसंधान केन्द्र स्थित है।
- लूणकरणसर : यह ‘राजस्थान का राजकोट’ कहा जाता है।
- सूरसागर झील, गजनेर झील व लूणकरणसर झील बीकानेर में है।
- बीकानेर में गजनेर में पक्षी अभयारण्य भी है।
- खजूर की खेती को बढ़ावा देने के लिए बीकानेर में खजूर अनुसंधान केन्द्र की स्थापना की गई।
- पुरा अभिलेखों को संग्रहित करने के उद्देश्य से बीकानेर में ‘राजस्थान राज्यय अभिलेखागार संस्थान’ की स्थापना की गई।
- बीकानेर के भुजिया पापड़ व रसगुल्लों के साथ-साथ पंढारी लड्डू भी प्रसिद्ध हैं ।
- खारा, बीकानेर में सिरेमिक कॉप्लेक्स स्थापित किया गया है। • बीकानेर में राजस्थानी भाषा, साहित्य व संस्कृति अकादमी स्थापित की गई है।
- करणी संग्रहालय बीकानेर में स्थित है।
- बीकानेर जन्तुआलय : सन् 1922 में स्थापित यह जन्तुसालय राज्य का तीसरा प्राचीन जन्तुआलय है।
- डोडा थोरा : यहाँ लघु पाषणकालीन पुरातात्विक अवशेष प्राप्त हुए है।
- रोजड़ी : यहाँ राजस्थान सहकारी डेयरी फेडरेशन का सीड मल्टीप्लीकेशन फार्म स्थित है।
- नाल : यहाँ सामरिक महत्त्व का भूमिगत हवाई अड्डा है।
- कतरियासर : जसनाथ जी का समाधि स्थल।
- विग्गा गाँव : यहाँ गौ रक्षक देवता वीर बिग्गा जी का मंदिर है।
- राजस्थान में बीकानेर न्यूनतम जनजाति वाला जिला है।
- बीकानेर की जूनागढ़ प्रशस्ति प्रसिद्ध है।
- बीकानेर में अलखगिरि मतानुयायी लक्ष्छीराम का बनवाया हुआ। ‘अलखसागर’ नाम का प्रसिद्ध कुआँ है। यह आठ तीवण का कुआँ है।
- बीकानेर नगर की शहरपनाह में पाँच दरवाजे-कोट, जस्सुसर, खुपर, सीतला और गोगा है।
- कैसोजी ने ‘मुकाम महातम’ नाम की साखी लिखी। बीकानेर का इतिहास
- विश्नोई सम्प्रदाय में धूप मन्त्रों में ‘विवरस’ पाठ की बड़ी प्रसिद्ध है।
बीकानेर का इतिहास : प्रमुख पर्यटन स्थल
लालगढ़ पैलेस: महाराजा गंगासिंह द्वारा अपने पिता लालसिंह की स्मृति में लाल पत्थर से निर्मित करवाया गया। इसमें ‘अनूप संस्कृत लाइब्रेरी’ एवं ‘सार्दुल संग्रहालय’ हैं। अनूप संग्रहालय में जर्मन चित्रकार ए.एच. मूलर द्वारा चित्रित बीकानेर चित्रकला के अनेक चित्र हैं। लालगढ़ पैलेस का उद्घाटन 24 नवम्बर, 1915 को भारत के वायसराय लॉर्ड हार्डिग्ज द्वारा किया गया। 1937 के बाद राजपरिवार इसी महल में रहने लगा। इसकी डिजाइन सर स्विंटन जैकब ने बनाई। यह पैलेस दुलमेरा की खानों से लाए गए लाल पत्थर से बनाया गया है। यहाँ 1974 से लालगढ़ पैलेस होटल भी प्रारम्भ किया गया है।

सर सादुल म्यूजियम: यह म्यूजियम लालगढ़ पैलेस के सादुल निवास में स्थित है। यह म्यूजियम 1976 में अस्तित्व में आया जब इसे महाराजा डॉ. करणीसिंह जी ने अपने पिता महाराजा सादुल सिंह जी को समर्पित किया।

जूनागढ़ फोर्ट (चिंतामणि दुर्ग) : यह किला प्राचीन दुर्ग ‘बीका की टेकरी’ के स्थान पर राजा रायसिंह द्वारा बनवाया गया। इसमें चन्द्र महल, फूल महल एवं करण महल दर्शनीय हैं। इस दुर्ग के मुख्य प्रवेश द्वार को कर्णपोल कहते हैं। जूनागढ़ दुर्ग को उसकी भव्यता के कारण ‘जमीन का जेवर’ कहा जाता है। बीकानेर का इतिहास

देवीकुंड सागर: यहाँ बीकानेर राज परिवार की छतरियाँ (समाधियाँ या स्मारक) हैं। यहाँ राव कल्याणसिंह से लेकर महाराजा डूंगरसिंह तक की छतरियाँ बनी हुई हैं। महाराजा रायसिंह की छतरी उल्लेखनीय है, क्योंकि उसमें उसके साथ जल मरने वाले संग्राम सिंह नामक एक व्यक्ति का उल्लेख है। इस स्थान पर सती होने वाली अंतिम महिला का नाम दीपकुँवरी था, जो महाराणा सूरतसिंह के दूसरे पुत्र मोतीसिंह की स्त्री थी और अपने पति की मृत्यु पर सन् 1825 में सती हुई थी। उसकी स्मृति में आज भी प्रति वर्ष भादों के महीने में यहाँ मेला लगता है। यहाँ महाराजा सूरतसिंह की छतरी का निर्माण महाराजा रत्नसिंह ने करवाया। इसकी प्रतिष्ठा 26 फरवरी, 1836 को की गई। महाराजा डूंगरसिंह ने यहाँ महाराजा छत्रसिंह के नाम पर गिरधर का मंदिर, दलेलसिंह के नाम पर बद्रीनारायण, शक्तिसिंह के नाम पर गोपाल, अपनी माता जुहार कुँवरी के नाम पर गणेश, विमाता प्रतापकुँवरी के नाम पर सूर्य और अपने ज्येष्ठ भ्राता गुलाबसिंह की स्मृति में गुलाबेश्वर का मंदिर बनवाया। बीकानेर का इतिहास

गंगागोल्डन जुबली म्यूजियम: भारत के गवर्नर जनरल लॉर्ड लिनलिथगो ने 5 नवम्बर, 1937 को इसका उद्घाटन किया। इसे बीकानेर संग्रहालय भी कहते हैं। इसमें सिंधुघाटी सभ्यता से लेकर गुप्तकाल एवं महाराजा गंगासिंहजी तक की कई पुरातात्विक वस्तुएं संग्रहित हैं।

गंगा निवास पब्लिक पार्क : जूनागढ़ किले की कर्णपाल के सामने सूरसागर के निकट यह उद्यान स्थित है। इसका उद्घाटन लॉर्ड हार्डिग्ज द्वारा नवम्बर, 1915 में किया गया। इसके प्रधान प्रवेश द्वार का नाम ‘क्वीन एम्प्रेस मेरी गेट’ है। पार्क के एक किनारे पर महाराजा डूंगरसिंह की संगमरमर की मूर्ति लगी है। इस प्रतिमा का उद्घाटन महाराजा गंगासिंह द्वारा 5 अक्टूबर, 1916 को किया गया। इसी उद्यान के एक तरफ महाराजा गंगासिंह के शिक्षक मि. इजर्टन के नाम पर ‘इजर्टन टैंक’ बना है। पास में ही महाराजा गंगासिंह की अश्वारुड काँसे की मूर्ति भी लगी है। डूंगरसिंह की प्रतिमा के सामने का द्वार ‘डनलप स्मिथ द्वार’ तथा सर्किट हाउस की तरफ का द्वार ‘लॉर्ड मिंटो द्वार’ कहलाता है। यहाँ 1932 ई. में गंगा थियेटर का निर्माण भी कराया गया। इस उद्यान में जंतुआलय भी है जिसके बीच में 66 फुट ऊँचा कीर्ति स्तम्भ बीकानेर की स्थापना से लेकर 1972 तक शहीद हुए वीरों की स्मृति में बनाया गया। इस उद्यान में सर चार्ल्स बेले एवं लेडी बेले की स्मृति में बनवाया गया पार्क भी है। बीकानेर का इतिहास

कर्जन बाग व विक्टोरिया मेमोरियल क्लब : महाराजा गंगासिंह ने महारानी विक्टोरिया की स्मृति में विक्टोरिया मेमोरियल क्लब बनवाया। कर्जन बाग व विक्टोरिया मेमोरियल क्लब का उद्घाटन 24 नवम्बर, 1902 को लॉर्ड कर्जन ने किया।
गजनेर झील: महाराजा गंगासिंह ने यह झील अकाल राहत कार्यों के तहत खुदवाई। यहाँ पर स्थित गजनेर के महलों में डूंगर निवास, लाल निवास, शक्ति निवास, गुलाब निवास और सरदार निवास नामक सुंदर महल हैं। गजनेर कस्बा महाराजा गजसिंह के समय आबाद हुआ था।

अन्य स्थल: कल्याण सागर, हरसोलाव, अनोपसागर कुआँ, सूरसागर, लाली बाई की बगीची, मुरली मनोहर वाटिका, गांधी पार्क, नेहरू उद्यान आदि।
बीकानेर का इतिहास : प्रमुख हवेलियाँ
रामपुरिया परिवार की हवेलियाँ :- ये हवेलियाँ रामपुरिया मोहल्लों की एक गली में क्रमबद्ध रूप से खड़ी है। इस गली को ‘हवेलियों की गली’ कहा जाए तो कोई की हवेलियाँ अतिशयोक्ति नहीं होगी। ये सभी हवेलियाँ एक ही परिवार रामपुरिया परिवार की है और अपने विशाल आंगन और स्थापत्य कला के कारण विश्वविख्यात है। प्रमुख हवेलियाँ हैं-
- सेठ भँवरलाल जी रामपुरिया की हवेली- वर्तमान में यह हवेली होटल भँवर निवास’ के नाम से विख्यात है।
- हीरालाल रामपुरिया की हवेली।
- माणकचंद रामपुरिया की हवेली। बीकानेर का इतिहास

डागा परिवार की हवेलियाँ : ये हवेलियाँ बीकानेर में डागों के चौक में है। इसमें लक्ष्मीनारायण डागा की हवेली (गोल्डन किंग की हवेली), रायबहादुर विश्वेसर दास डागा की हवेली, सुखदेव दास, रिखवदास डागा की हवेली, सूरतनारायण डागा की हवेली, चुन्नीलाल की हवेली, सेठ कस्तूर चंद डागा की हवेली व गिरधारीलाल कल्ला की हवेली मुख्य है।

मोहता परिवार की हवेलियाँ : इसमें रामगोपाल मोहता की हवेली, सुंदरलाल जी बाठियों की हवेली, जगन्नाथ जी भागीरथ जी मोहता की हवेली, लक्ष्मीचंद कन्हैयालाल मोहता की हवेलियाँ मुख्य है।

सेठ चाँदमल ढड्ढा की हवेली : यह हवेली बीकानेर में ढड्ढों के चौक में स्थित है। इस चौक की दूसरी हवेली प्रतापसिंह ढड्ढा की हवेली है। बीकानेर का इतिहास
रिखजी बागड़ी की हवेली : यह तीन मंजिली हवेली है।
पूनमचंद जी कोठारी की हवेली : यह कोठारी मोहल्ला में स्थित है। यह हवेली तितलीनुमा है। इस हवेली में सारा पत्थर दुलमेरा का है। इसके निर्माता भूधर जी चलवा थे।
श्री भैरोंदान जी कोठारी की हवेली : यह हवेली संगमरमर पर कारीगरी का एक बेहतरीन नमूना है। यह हवेली शाहजहाँ कालीन मुगल इमारतों की याद को ताजा कर देती है।
श्री चुन्नीलाल जी कोठारी की हवेली :यह हवेली सोनियों के चौक में स्थित है।
बिन्नाणी चौक की हवेलियाँ : 1. प्रयागदास जीवनलाल विन्नाणी की हवेली। 2. गोपीकिशन बिन्नाणी की हवेली। 3. बलदेव बाबू बिन्नाणी की हवेली।
लखोटिया चौक की हवेलियाँ : 1. सेठ मुरलीधर मोहता की हवेली। 2. हनुमानदास मोहता की हवेली। 3. शिवदास जी माणक लाल जी बिन्नाणी की हवेली।
मोहता चौक की हवेलियाँ : 1. मोहता बखतावर सिंह की मकराने के रांस वाली पिरोल की हवेली। 2. सूरजनारायण मोहता की हवेली।
आसाणियों के चौक की हवेलियाँ : आसाणियों के चौक में जयपुर के राजमंदिर वाले गोलछा परिवार की हवेलियाँ थी। यहीं पर सेठ राम गोपाल गोवर्धन दास मेहता की हवेली है।
बीकानेर का इतिहास : प्रमुख मंदिर
करणी मंदिर: बीकानेर के इतिहास मे करणी माता का यक विशेष स्थान है। देशनोक स्थित करणी माता का यह मंदिर अपनी स्थापत्य कला एवं अत्यधिक संख्या में चूहों के लिए प्रसिद्ध है। करणी माता बीकानेर के राठौर राजवंश की कुलदेवी, चूहों की देवी व चारणों की कुलदेवी है। यहाँ काबा (मंदिर के सफेद चूहे ) के दर्शन को शुभ माना जाता है। इस मंदिर की ओरण भूमि में ‘नेहड़ी जी का मंदिर’ है, जिसमें प्रतिदिन खेजड़ी वृक्ष की पूजा भी की जाती है। बीकानेर का इतिहास

श्रीकोलायत जी: यह कपिल मुनि की तपोभूमि है। यहाँ स्थित कपिल सरोवर में स्नान का महत्त्व गंगा स्नान के बराबर है। जनश्रुति के अनुसार महर्षि कपिल ने यहाँ सांख्य दर्शन का प्रतिपादन किया था तथा अपनी माताश्री देवहूति को सांख्य योग का तत्व ज्ञान देकर उन्हें मोक्ष पद प्रदान किया। कार्तिक पूर्णिमा को यहाँ प्रसिद्ध मेला भरता है। कोलायत में गुरुनानक देव भी पधारे थे अतः कोलायत की मान्यता सिक्य समुदाय में भी बहुत है। उन्होंने यहाँ उपदेश दिया था। सिक्खों का यहाँ एक बड़ा गुरुद्वारा भी है। कोलायत के पास के गाँव में महर्षि च्यवन तथा दत्तात्रेय की भी तपोभूमि है। इन संतों की तपोभूमि को चाँदी और दियातरा गाँव के नाम से जाना जाता है। कोलायत के मेले में कोलायत झील में दीपदान की परम्परा है।

मुकाम-तालवा (नोखा, बीकानेर) : विश्नोई सम्प्रदाय का प्रमुख और पवित्र तीर्थ स्थान। यहाँ इस सम्प्रदाय के प्रवर्तक जांभोजी का समाधि मंदिर है।

लक्ष्मीनारायण जी का मंदिर : इस भव्य मंदिर का निर्माण राव लूणकरण ने करवाया। इस मंदिर में विष्णुजी व लक्ष्मीजी की मूर्ति प्रतिष्ठित है।

भांडाशाह का सुमतिनाथ जैन मंदिर (घी वाला मंदिर) : बीकानेर में स्थित भांडाशाह या भांडासर (भाण्डरेश्वर) जैन मंदिर में पाँचवें तीर्थकर सुमतिनाथ जी की प्रतिमा है। बीकानेर शहर की दक्षिण-पश्चिम दिशा में स्थित यह भव्य मंदिर भांडाशाह नामक ओसवाल महाजन द्वारा सन् 1411 (वि.सं. 1468) में बनवाया। इस भव्य मंदिर का स्थापत्य और मनोहारी चित्रकारी देखते ही बनती है। ऐसा माना जाता है कि इसके निर्माण में पानी की जगह घी का प्रयोग किया गया था। अतः यह मंदिर घी वाले मंदिर के नाम से भी प्रसिद्ध है। इस मंदिर के गर्भगृह में जैन धर्म के पाँचवें तीर्थकर सुमतिनाथ की सफेद संगमरमर से बनी भव्य प्रतिमा प्रतिष्ठित है। बीकानेर रियासत के सुप्रसिद्ध चित्रकार मुराद बख्श उस्ता ने इस मंदिर की दीवारों पर स्वर्णयुक्त मीनाकारी का कलात्मक कार्य किया। यह केन्द्र सरकार द्वारा संरक्षित स्मारक है। बीकानेर का इतिहास
हेरम्ब गणपति : बीकानेर के जूनागढ़ दुर्ग में तैंतीस करोड़ देवताओं का मंदिर स्थित है जिसमें दुर्लभ हेरम्ब गणपति की प्रतिमा है। इस मूर्ति की विलक्षण बात यह है कि गणपति मूषक पर सवार न होकर सिंह पर सवार हैं। तैंतीस करोड़ देवताओं के मंदिर में स्थित मूर्तियाँ महाराजा अनूपसिंह ने दक्षिण में रहते समय मुसलमानों के हाथ से बचाकर यहाँ पहुँचाई थी।
नेमीनाथ का मंदिर : यह भांडाशाह के भाई द्वारा बनवाया गया।
धूनीनाथ का मंदिर : यह मंदिर इसी नाम के एक योगी ने सन् 1808 में बनवाया।
नागणेची का मंदिर : इस मंदिर में अपनी मृत्यु से पूर्व ही महिषासुरमर्दिनी की 18 भुजावाली मूर्ति राव बीका ने जोधपुर से यहाँ लाकर स्थापित की थी। बीकानेर का इतिहास
राजरतन बिहारी का मंदिर : महाराजा रत्न सिंह ने 1846 ई. में अपने नाम से राज रतन बिहारी का मंदिर बनवाना आरंभ किया था, जिसके पूर्ण होने पर 4 मार्च, 1851 में महाराजा ने स्वयं इसकी प्रतिष्ठा की।
रसिक शिरोमणि का मंदिर : यह मंदिर महाराजा सरदार सिंह ने बनवाया।
श्री चिंतामणि मंदिर : मुकाम में स्थित यह मंदिर जैसलमेर की पीले पत्थर से स्थाकृति में बना हुआ है। इस मंदिर में दो भूमिगत मंदिर भी है।
अंता देवी का मंदिर : इस मंदिर में ऊँट पर आरूढ देवी की प्रतिमा है।
सुसानी देवी का जैन मंदिर : यह मोरखाणा में स्थित है। यह मंदिर केन्द्र सरकार द्वारा संरक्षित स्मारक है।
चतुर्भुज का मंदिर : बीकानेर में यह मंदिर जोरावरसिंह की राजमाता सीसोदिणी ने बनवाया। जोरावर सिंह ने 1744 ई. में उसकी प्रतिष्ठा की।
पूर्णेश्वर महादेव मंदिर : बीकानेर के भीनासर कस्बे में संत पूर्णानंद का मंदिर ‘श्री पूर्णेश्वर महादेव मंदिर के नाम से विख्यात है। इस मंदिर में प्रतिवर्ष चैत्र शुक्ल प्रतिपदा और द्वितीया को संत स्मृति में ‘बाप जी का मेला’ लगता है।
सांडेश्वर मंदिर : बीकानेर में यह जैन मंदिर स्थित है।
शिवबाड़ी : यहाँ महाराजा डूंगरसिंह द्वारा बनवाया गया लालेश्वर का शिव मंदिर है जो उन्होंने अपने पिता महाराज लालसिंह की स्मृति में बनवाया। 11880 ई. में इसकी प्रतिष्ठा की गई। इस मंदिर का शिवलिंग ठीक मेवाड़ के प्रसिद्ध एकलिंगजी की मूर्ति के सदृश है। यहाँ प्रतिवर्ष श्रावण मास में मेला भरता है।
पूर्णासर बालाजी : पूर्णासर गाँव में खेजड़ी के पुराने पेड़ के साथ स्थित हनुमानजी का प्राचीन मंदिर है।
निष्कर्ष:
आज की इस पोस्ट के माध्यम से हमारी टीम ने आप सभी पाठकों के लिए बीकानेर का इतिहास ने संबंधित सभी जानकारी को साझा किया है, यह जानकारी गहन खोज के बाद लिखी गई है एसके बावजूद भी यदि आपको बीकानेर का इतिहास विषय मे कोई त्रुटि नजर आती है तो आप अपना सुजाव कमेन्ट सेक्शन मे कमेन्ट कर सकते है। धन्यवाद