कोटा का इतिहास: कोटा इतिहास काफी प्राचीन है, कोटा की स्थापना एक भील शासक कोटिया भील ने की थी, और कोटिया भील के नाम पर कोटा का नाम कोटा रखा गया था। कोटा राजस्थान के पूर्वी मैदानी भाग मे स्थित है यह चम्बल नदी के तट पर स्थित है। कोटा अपने इतिहास के साथ- साथ वर्तमान मे शिक्षा के क्षेत्र मे प्रसिद्धि के कारण जाना जाता है, कोटा मे चौहान वंश की हाँड़ा शाखा ने शासन किया। इतिहासकारों के अनुसार इस क्षेत्र मे हाँड़ा चौहनों के शासन के कारण इस क्षेत्र को हाड़ौती कहा जाने लगा ।

कोटा का इतिहास: Kota History In Hindi
राजस्थान की औद्योगिक नगरी, राजस्थान के कानपुर एवं शैक्षिक नगरी के रूप में विख्यात । प्रारंभिक शासक कोटिया भील के नाम पर इसका नाम कोटा पड़ा। बूँदी के हाड़ा शासक समरसिंह व उसके पुत्र जैत्रसिंह ने कोटिया भील को पराजित कर कोटा प्रदेश को अपने राज्य में मिला लिया तथा कोटा की जागीर जैत्रसिंह को सौंप दी गई। सन् 1631 ई. में मुगल बादशाह शाहजहाँ ने इसे बूँदी रियासत से पृथक कर बूँदी के शासक राव रतनसिंह के पुत्र माधोसिंह को इसका शासन सौंप दिया था। तब से कोटा रियासत एक स्वतंत्रत रियासत बनी। 25 मार्च, 1948 को कोटा रियासत का राजस्थान संघ में विलय किया गया।’
कोटा का इतिहास: संक्षिप्त जानकारी
नाम | कोटा का इतिहास |
राज्य | राजस्थान |
क्षेत्रफल | 5217 वर्ग किमी. |
संस्थापक | कोटिया भील |
स्थिति | पूर्वी भाग हाड़ौती क्षेत्र |
लोकैशन | गूगल मेप |
कोटा का इतिहासः महत्वपूर्ण तथ्य
- क्षेत्रफल 5217 वर्ग कि.मी.
- कोटा चम्बल नदी के किनारे स्थित है।
- कोटा की कोटा डोरिया व मसूरिया साड़ियाँ प्रसिद्ध है।
- सांगोद (कोटा) का न्हाण प्रसिद्ध है। यहाँ कोटा स्टोन बहुतायत से निकलता है।
- कोटा के प्रथम हाड़ा शासक राव माधोसिंह द्वारा कोटा में दशहरा मेला आयोजित करने की परम्परा शुरू की गई।
कोटा का इतिहासः पर्यटन स्थल
1. यातायात पार्क: जुलाई, 1992 में निर्मित हाड़ौती यातायात प्रशिक्षण पार्क, जो राज्य का प्रथम यातायात पार्क है।

2. जगमंदिर: कोटा के किशोरसागर तालाब के बीच स्थित महल जिसे मेवाड़ के महाराणा संग्राम सिंह (द्वितीय) की पुत्री तथा कोटा राज्य के तत्कालीन शासक महाराव दुर्जनशाल सिंह हाड़ा की रानी बृजकंवर ने 1739 ई. में निर्मित करवाया था। यह उदयपुर के लेक पैलेस की तर्ज पर बनवाया गया था।

3. कोटा का हवामहल: कोटा के गढ़ के मुख्य प्रवेश द्वार के पास ही महाराव रामसिंह द्वितीय द्वारा बनवाया गया हवामहल स्थित है।

4. किशोर विलास बाग: राव किशोर सिंह जी ने कोटा शहर के किशोर सागर तालाब की पाल की मरम्मत करवाई व किशोर विलास बाग बनवाया।

5. छत्र विलास उद्यान: इसका निर्माण महाराजा छत्रसाल ने करवाया।

6. राजकीय महाविद्यालय: इसका निर्माण महाराव उम्मेदसिंह द्वितीय के शासन काल में सन् 1919-20 के मध्य हुआ। तत्कालीन पॉलिटिकल एजेन्ट कर्नल हर्बर्ट के नाम पर इसका नाम हर्बर्ट कॉलेज रखा गया। सन् 1954 में इसका नाम बदलकर राजकीय महाविद्यालय कर दिया गया।

7. अभेड़ा महल: चम्बल नदी के किनारे कोटा बस स्टेण्ड से करीब 7 किमी दूर कोटा डाबी मार्ग पर अभेड़ा के ऐतिहासिक महल स्थित हैं।

8. क्षार बाग: छत्र विलास उद्यान के निकट क्षारबाग में कोटा नरेशों की कलात्मक छतरियाँ (श्मसान) है।

9. चंबल उद्यान: चंबल नदी के किनारे रावतभाटा मार्ग पर 1972-1976 की अवधि में बनाया गया चंबल उद्यान इसकी विशेषता है कि इसे चट्टानी भूमि पर विकसित किया गया है।

10. खातोली: कोटा जिले की पीपलदा तहसील में स्थित गाँव जहाँ 1518 ई. में खातोली के युद्ध में मेवाड़ महाराणा सांगा ने दिल्ली के सुल्तान इब्राहीम लोदी को हराया था।
11. समाधि उद्यान: चंबल नदी के किनारे शैव महन्तों द्वारा बनवाई गई दो कलात्मक समाधियाँ। इनका निर्माण राव किशोर सिंह प्रथम के समय (1670- 1686) में किया गया। इन समाधियों के परिसर में नगर निगम द्वारा आकर्षक उद्यान लगाया गया है।
12. अहिंसा वाटिका: वर्ष 1993 में निर्मित यह वाटिका सर्वधर्म समभाव का संदेश प्रसारित करती है। इस पार्क में एकता सूर्यस्तम्भ स्थापित किया गया है।
13. अकेलगढ़: कोटा शहर के दक्षिण में चम्बल नदी के तट पर स्थित दुर्गों के खण्डहर।
14. अबली मीणी का महल: मुकुन्दरा गाँव (रामगंज मंडी तहसील) में कोटा के राव मुकुन्दसिंह (1648-1658 ई.) द्वारा अपनी पासवान अबली मीणी हेतु बनवाया गया महल ।
15.अन्य स्थल: केसर खान व डोकर खान की कब्रें, नेहर खाँ की मीनार, महाराव माधोसिंह म्यूजियम, दर्रा अभयारण्य, कोटा बैराज, तिपटिया व आलनिया की 50000 वर्ष पुरानी रॉक पेन्टिंग्स। रंगबाड़ी (भगवान महावीर का प्राचीन मंदिर), लक्खीबुर्ज उद्यान, कन्वास का मंदिर समूह, दर्रा का किला, भीतरिया कुण्ड, पद्मापीर की छतरी, अधरशिल्प, कोटागढ़ पैलेस आदि।
कोटा का इतिहासः प्रमुख मेले
मेला | स्थान |
दशहरा मेला | कोटा |
महाशिवरात्रि मेला | गेपरनाथ, कोटा |
शिवरात्रि मेला | चारचौमा |
नर सिंह देव | चेचट |
तेजाजी मेला | बूढ़ादीत |
कोटा का इतिहासः प्रमुख मंदिर
•मथुराधीश मंदिर: कोटा नगर में पाटनपोल के निकट स्थित मथुराधीश मंदिर वल्लभाचार्य सम्प्रदाय के प्रथम महाप्रभु की पीठिका है। इस मंदिर का निर्माता राजा शिवगण था। विक्रम संवत् 1801 में कोटा नरेश महाराज दुर्जनशाल सिंह हाड़ा इस प्रतिमा को कोटा लाये ।

• कंसुआ का शिव मंदिर: 8वीं शताब्दी में निर्मित। कहा जाता है कि कण्व ऋषि का आश्रम यहीं पर था। यह गुप्तोत्तरकालीन शिवालय है। यहाँ सहस्त्र शिवलिंग है। यहाँ आठवीं शताब्दी की कुटिल लिपि में शिवगण मौर्य का शिलालेख है ।

• चारचौमा का शिवालय: कोटा जिले की दीगोद तहसील के चौमा मालियां गाँव में स्थित गुप्तकालीन स्थापत्य शैली में निर्मित्त शिव मंदिर ।

• विभीषण मंदिर, कैथून: यह भारत का एकमात्र विभीषण मंदिर है।
• भीम चौरी: हाड़ौती क्षेत्र में दर्रा मुकन्दरा के मध्य स्थित गुप्तकालीन शिव मंदिर। यह राजस्थान के ज्ञात गुप्तकालीन मंदिरों में प्राचीनतम है। इसे भीस का मण्डप माना जाता है। यहाँ एक स्तम्भ पर ध्रुव स्वामी का नाम लिखा है।
• बूढ़ादीत का सूर्य मंदिर: कोटा में दीगोद तहसील में यह पंचायतन शैली का प्राचीनतम सूर्य मंदिर है।
• खुटुम्बरा शिवमंदिर: उड़ीसा के मंदिरों के शिखरों से साम्य रखने वाला प्राचीन मंदिर।
• 1008 श्री मुनि सुव्रतनाथ दिगम्बर जैन त्रिकाल चौबीसी मंदिर: आर.के. पुरम कोटा में निर्मित इस मंदिर में तीनों कालों के 72 तीर्थकरों की प्रतिमाएँ विराजमान हैं। यह मंदिर राज्य में इस तरह का दूसरा व हाड़ौती क्षेत्र का पहला त्रिकाल चौबीसी मंदिर है। इस मंदिर के मूल नायक मुनि सुव्रतनाथ है। यहाँ सुनि सुव्रतनाथ की काले पाषाण से निर्मित प्रतिमा है। इस मंदिर की मुख्य वेदी का शिलान्यास 7 जून, 2007 को कराया गया तथा 21 से 24 जनवरी, 2008 को इसका भव्य पंचकल्याणक प्रतिष्ठा महोत्सव कार्यक्रम सम्पन्न हुआ।
• गेपरनाथ शिवालय: यह गुप्तकालीन शिवालय कोटा-रावत भाटा मार्ग पर है। यहाँ गेपरनाथ जल प्रपात भी है।
श्री डाढ़ देवी माताजी: यह मंदिर उम्मेद गंज, कोटा में स्थित है। यह मंदिर कैथून के तँवर राजपूतों द्वारा कोटा में 10वीं शताब्दी में बनाया गया। यहाँ डाढ़ देवी के रूप में देवी दुर्गा की पूजा की जाती है। चैत्र व आश्विन नवरात्रा में यहाँ मेला भरता है। यह मंदिर नागर शैली में निर्मित है।
• शिव मठ मंदिर, चंद्रेसल: यह शिव मंदिर नागा साधुओं द्वारा 10वीं शताब्दी में चंद्रेसल नदी पर बनाया है। इस नदी में मगरमच्छ बहुतायत से पाए जाते हैं।
• करणेश्वर महादेव: यह शिव मंदिर कनवास (सांगोद, कोटा) में स्थित है।
• गोदावरी धाम: यह कोटा में स्थित भगवान हनुमान जी का मंदिर है। यह चम्बल नदी के किनारे स्थित है।
• गरडिया महादेव मंदिर: यह कोटा से 28 किमी. दूर दौलतगंज के पास चम्बल नदी के किनारे स्थित प्राचीन शिव मंदिर है। डाबी (बूंदी) से यह 30 किमी. दूर है।
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निष्कर्ष:
आज के इस आर्टिकल के माध्यम से हमारी टीम ने कोटा का इतिहास विषय से संबंधित विस्तरत जानकारी उपलब्ध कारवाई है। इस आर्टिकल मे बताई गई कोटा के इतिहास से संबंधित बाते गहन खोज के बाद लिखी गई है, फिर भी यदि आपको कोई त्रुटि नजर आती है तो हमे कमेन्ट करके अपना सुजाव जरूर दे।